विचार स्वरुप स्थिति भाग १ | Vichar Swarup Sthiti Part-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वरूप स्थिति ३ 1 ३१
दशकल्घचर श्रादेश सान, सारीच फुरव से भ्रपते ।
चर कनक सुग क्रपट देष, चल दिया राम को छलने ॥
लखन फुरन निश्चित रेखा को, लाँघ सका नहि रावन |
पुरमनाथ क्या कर न सके,यदि हो फुरना ग्रति पावन 1४८१
च्यास फुरन ने पाण्डु, दिदुर, धृतराष्ट्र पुत्र उपजाये ।
युथक पृथक सतायों के, फुरनों का गुर जो पाये ॥।
व्यास दृष्टि सामाव्य रूप से, पुत्र रूप सें झ्ाई ।
पूर्ताथ पीतत्व भक्ति झन्धापन सातु बनाई ।। ४९1६
कर्त_व्वाभिनान ज्योंही है श्रहं फुरन में ढलता ।
युण्य पाप संयोग तहीं, परिसाम रूप में फलता ॥।
उपादान संकल्प जीव का, झौ निमित्त ईश्वर का ।
पूर्नाथ फुरने से ही, उद्भव सम्भव है नर का ॥४५०॥।
इईश फुरन का प्रेत चला, सासदेव को त्रास दिखाने ।
रासरूप दर्शन करवाया, नासदेव की फुरना ने ॥
फुरते से जग रचा हुश्रा है, प्रभु की निश्चय साचो ।
युर्णनाथ फुरनों का कौतुक, तुम तो खुद ही जानो 1४५ १॥1
करता है श्रपघात मुठ जो, मंत्र शक्ति का भेजा ।
डाइन लेती काढ़ फुरत से, शिशु नवजात कलेजा ॥1
इष्टिपात से नन्हें बच्चों के मुखड़े कुम्हलाते ।
पुर्णनाथ फटतीं दीवार; सुख वृक्ष तक. जाते ॥ ४५२1१
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