विचार स्वरुप स्थिति भाग १ | Vichar Swarup Sthiti Part-i

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vichar Swarup Sthiti Part-i by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
स्वरूप स्थिति ३ 1 ३१ दशकल्घचर श्रादेश सान, सारीच फुरव से भ्रपते । चर कनक सुग क्रपट देष, चल दिया राम को छलने ॥ लखन फुरन निश्चित रेखा को, लाँघ सका नहि रावन | पुरमनाथ क्या कर न सके,यदि हो फुरना ग्रति पावन 1४८१ च्यास फुरन ने पाण्डु, दिदुर, धृतराष्ट्र पुत्र उपजाये । युथक पृथक सतायों के, फुरनों का गुर जो पाये ॥। व्यास दृष्टि सामाव्य रूप से, पुत्र रूप सें झ्ाई । पूर्ताथ पीतत्व भक्ति झन्धापन सातु बनाई ।। ४९1६ कर्त_व्वाभिनान ज्योंही है श्रहं फुरन में ढलता । युण्य पाप संयोग तहीं, परिसाम रूप में फलता ॥। उपादान संकल्प जीव का, झौ निमित्त ईश्वर का । पूर्नाथ फुरने से ही, उद्भव सम्भव है नर का ॥४५०॥। इईश फुरन का प्रेत चला, सासदेव को त्रास दिखाने । रासरूप दर्शन करवाया, नासदेव की फुरना ने ॥ फुरते से जग रचा हुश्रा है, प्रभु की निश्चय साचो । युर्णनाथ फुरनों का कौतुक, तुम तो खुद ही जानो 1४५ १॥1 करता है श्रपघात मुठ जो, मंत्र शक्ति का भेजा । डाइन लेती काढ़ फुरत से, शिशु नवजात कलेजा ॥1 इष्टिपात से नन्हें बच्चों के मुखड़े कुम्हलाते । पुर्णनाथ फटतीं दीवार; सुख वृक्ष तक. जाते ॥ ४५२1१




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now