श्री भागवत - दर्शन भागवती - कथा भाग - 53 | Shri Bhagawat - Darshan Bhagavati - Katha Bhag - 53

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Shri Bhagawat - Darshan Bhagavati - Katha Bhag - 53  by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्तों के भगवान्‌ श्डे कम बोलते थे, जो भी बोलते थे ऐसा लगता था मानों भरत 'उड़ेल रहे हैं । सुना श्रमी वर्ष दो वर्ष पहिंले परलोकवासी हुए । उनकी छार्थिक स्थिति जीवन भर अत्यन्त दी साधारण रही । अन्त समय फरू साबाद छोड जयपुर चले गये थे । उनका भगवान्‌ पर अत्यन्त ही विश्वास था । उनके कोई पुत्र नहीँ था । पुत्री दी थी | जैसी कि सभी की इन्छा होती है, उनकी भी इच्छा थी, एक पुत्र हो जाय उनको 'ाशा थी, अचके पुत्र होगा, किन्तु अबके भी पुत्री ही हुई । घायने ्याकर कद्दा-- *पचाबूजी ने कहदा--जैसी भगवान्‌ की इन्छा । वे ध्यान करने नहोंगे। कुछ काल ही पश्चात्‌ धाय आाइं कि बह तो पुत्र हो गया । यह एक छदूभुत चमत्कार था। भगवान्‌ भक्त की इच्छा कैसे पूणं करते हैं । इसे बिना भक्त बने तक से कोई समभक नहीं सकता। यह श्लुभव की वस्तु है। बातूजी का वह पुत्र तो अभी तक हे ।”? थे। उनके यहाँ कुल परम्परागत कुछ ऐसी अ्रथा है, कि वे श्पनी जाति के शातिरिक्त अन्य किसी से मृतक को नहीं उठवाते । जाति वाले ही उसे स्मशान तक ले जाते हैं । चहीँ उनका कोई जाति बन्घु नहीं था। घर मे अफ्ले ही थे | वे बडी चिन्ता में थे श्च क्या करें । सहसा पीले-पीले कपड़े पहिने चार पॉच व्यक्ति 'श्राये और उन्होंने झाकर कहा--“हम शुज- राती ब्राह्मण हैं, हमारे पूर्व शुजरात के असुक स्थान के थे । दम इनका दाह सस्कार कर व्यावेंगे ।”? यह कहकर वे उन मृतक को बडी धूम धाम से ले गये । सब कार्ये करा कर वे लोग “चले गये, फिर किसी ने उन्हे नददीं देखा । ही




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