कालिंजर का सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व तथा पर्यटन विकास की संभावनाएं | Kalinjar Ka Sanskritik Evm Aetihasik Mahatv Tatha Paryatan Vikas Ki Sambhavanaen

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Kalinjar Ka Sanskritik Evm Aetihasik Mahatv Tatha Paryatan Vikas Ki Sambhavanaen  by रमिता सिंह - Ramita Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यथा- रेणुका शुकरः काशी, काली काल बटेश्वरों। कालिंजर महाकाल, ऊखला नव मुक्तिदाः।/ विश्व उपासना के अतिरिक्त इस क्षेत्र में विष्णु, जैन तथा बौद्ध मत से सम्बन्धित अनेक मूर्तियां और स्थल उपलब्ध होते है। कुछ स्थल तांत्रिकों और निराकार ब्रह्म उपासकों के भी उपलब्ध होते हैं।* कालिंजर का राजनीतिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व रहा है। साथ ही यहां की राजनीति अत्यन्त प्राचीन भी है।महाभारत आदि ग्रंथों में पाण्डवों के निवास का उल्लेख यहां उपलब्ध होता है। ऐसा कौन सा आकर्षण था, जिसके कारण आदिकाल से लेकर अब तक हर नरेश कालिंजर का शासक बनने का स्वप्न देखता था। अति प्राचीन काल में जब से राज व्यवस्था का उदय हुआ, उस समय से यह क्षेत्र चेदि वंशीय नरेश उपरिचरि बसु के आधीन था और इसकी राजधानी सुक्तिमती नगरी थी त्रेतायुग में यह क्षेत्र कौशल राज्य के अन्तर्गत था। भगवान श्री राम ने कुत्ता मारने के अपराध में दण्ड स्वरूप ही कालिंजर भरवंशीय ब्राम्हणों को दे दिया था। इसके ऐतिहासिक साक्ष्य बाल्‍्मीकि रामायण में उपलब्ध होते हैं।* द्वापर युग में यह क्षेत्र चेदि वंशियों के आधीन था। जिसका शासक शिशुपाल था। उसके पश्चात यह क्षेत्र राजा विराट के आधीन रहा।” ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में यह क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से चेदि जनपद का एक भाग था। पालि जातकों में महात्मा बुद्ध की यात्रा का वर्णन है। वे सुक्तिमती, भरहुत, कुचेहरा होतें हुए विदिशा तक गये।* उसके पश्चात यह क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से मौर्यो के आधीन रहा। बाँदा गजेटियर तथा मौर्य काल के उपलब्ध इंतिहास में अनेक ऐसे साक्ष्य हैं। जिनसे इस बात की पुष्टि होती है।* गुप्त युग में यह क्षेत्र गुप्तों के आधीन हो गया है उस समय यह बिन्ध्य आटवीं के नाम से विख्यात था। गुप्त कालीन शासक समुद्र गुप्त का जो अभिलेख (प्रयाग प्रसस्ति) के रूप में इलाहाबाद में उपलब्ध हुआ है। उसमें इस क्षेत्र को. गुप्तों के आधीन स्वीकार किया गया है| 0 गुप्तों पश्चात यह सम्राठ हर्षवर्धन के राज्य का एक अंग था| हर्ष वर्धन के युग में इस क्षेत्र का राजनीतिक महत्व कम नहीं था। सुप्रसिद्ध साहित्यकार बाणभट्ट ने. हर्षचरित सार और कादम्बरी में इसे विन्ध्य आठवीं के अन्तर्गत रखा है। हर्षवर्धन की बहन राजश्री यहीं. सती होनें के लिए आई थी। जिसे हर्षवर्धन ने सती नहीं होने दिया। हर्षवर्धन से लेकर नागभट्ट द्वितीय के समय तक यह क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से गुर्जर प्रतिहारों के ही आधीन रहा तथा चन्देल नरेश उनके ही अधीन कार्य करते रहे। गुर्जर प्रतिहारों के पतन के पश्चात जब गुर्जर प्रतिहार राजाओं से चन्देल सामंत स्वतन्त्र _ हुए तब यह क्षेत्र स्वतंत्र रूप से चन्देलों के आधीन हो गया और उस समय यह स्थल राजनीति का प्रमुख. . केन्द्र बन गया। चन्देल नरेशों ने कालिंजर, अजयगढ़ मड़फा, रसिन, महोबा, मनियागढ़ , देवगढ़, तथा ही गोपीगढ़ (ग्वालियर) तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। पथ्वीराज के आक्रमण के पश्चात जब... . परमर्दिदेव पराजित हुआ, उस समय इस राज्य का विभाजन हो गया। चन्देलों का पतन भी प्रारम्भ हो गया।




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