जालौन जनपद में साहित्य सर्जना एक सर्वेक्षण | Jalaun Janapad Men Sahity Sarjana Ek Sarvekshan

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Jalaun Janapad Men Sahity Sarjana Ek Sarvekshan by श्यामसुन्दर सोनकिया - Shyamsundar Sonkiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जालौन जनपद में साहित्य सर्जना: एक सर्वेशषण (5) शव - ऐतिडासिक पृष्ठभूमि एक निश्वित स्थान अभिधान के रूप में जालौन शब्द में पूर्पपद जाल तथा पर पद वन मिलकर जालवन बना, तत्पश्चात्‌ बिगड़कर जालौन उच्चरित होने लगा। जालौन के नामकरण के सम्बन्ध में एक मान्यता यह है कि इसे जालिम नामक ब्राह्मण ने बसाया था।' दूसरी मान्यता के अनुसार यहाँ जालवन मुनि का स्थान होने के कारण यह स्थान जालवन कहलाया, फिर बिगड़कर जालौन हो गया राजनीतिक चेतना एवं उथल-पुथल के परिणाम स्वरूप इस राज्य की सीमाएँ घटती-बढ़ती रही हैं। ईसा से 400 वर्ष पूर्व के इतिहास पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र क्रमशः महापद्म नन्द, चन्द्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र शुंग, कनिष्क, नागवंशी भारशिव, समुद्रगुप्त, हण राजा तोरमण, परिहारों तथा चंदेलों के आधिपत्य में रहा है ।? अगस्त 1729 _ में छनत्रसाल और बंगश में संधि के परिणाम स्वरूप बंगश की सेना कालपी से यमुना पार करके अपने इलाके में चली गयी। इस जिले का सम्पूर्ण भाग छन्रसाल के राज्य का भाग बना रहा। सन्‌ 1732 ई. में गोविन्दपन्त बल्‍लाल खैर ने जालौन में मराठा राज्य स्थापित किया और इतिहास में गोविन्दपन्त बुन्देला के नाम से प्रसिद्ध हुए ।” कुछ ही समय में गोविन्दपन्त ने चुर्खी, रायपुर, कनार, जालौन, कोंच, कालपी, मोहम्मदाबाद, एट तथा कैलिया का इलाका अपने छोटे पुत्र गंगाधर गोविन्द को सौंपकर उनका मुख्यालय कालपी में बनाया | 1-- सारस्वत, जालौन जनपद विशेषांक - संपा. अयोध्याप्रसाद गुप्त “कूमुद' सन्‌ 2001-2002, पृष्ठ 33 2- बलवंतसिंह - जालौन गजेटियर, पृष्ठ + 3- सरस्वत (पत्रिका) - सन्‌ 2001-2002, पृष्ठ 33.




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