अद्वैता विद्यातिलकम भाग १ | The Advaita Vidyatilakam Part.i No.37
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५१५ अद्वेतचिव्यातिलकद्पणम् ।
ह वाकाउज्ानवहन भवन्तमव
माचानवागवधघय' आतपादयन्त।
ब्रह्मपरा। वेदान्ता! , भिन्नमकर णपठितानां तेवां कतृत्वादि*
प्रतिपादकतया कमंशषत्वासं भवातू , तात्पयनि श्वयहतुमि! बदामि-
. लिंद्रेबेहपरत्वसंभवाव । तानि च-'उपक्रमोपसंहाराधभ्यासो5-
पूर्वता फठमू । अर्थवादोपपत्ती च छिड़े तात्पयनिणये' इति )..
_.. ससदेव सोम्पेदमग्र आसीत' इत्युपक्रः । “रेतदात्म्यमिद॑ सर...
दिद्टान्ता उपपात्त। । एता लड़ स्वातन्न्यण [वदान्ता ) ज्नह्म . पड
.. इत्यादाबिव बोधादनधेनिदते: संभवातू ।..
_ बगिकान्तरमकदेशी मन्यति-- रस मर
. ब्रझपरखे८्पि न वेदान्ता ब्रह्मण्येव पयवस्यन्ति, पारो-
_ क्षपेण बह्मतरे प्रतिपाद्य पश्चादपरोंक्षमातिपात्ति विदधति । तथा
च सति वेदान्तानां शासनाच्छाखत्वमुपपद्यते । किश्व, “श्रोत-
१-७ विधायाथ 'मन्तव्यों निदिध्या-
मननादिक॑ं स्पट्टमेर विर्धायते ।
... तत्सत्थ॑ स आत्मा तस्वमसि' इत्युपसंहारः । तयोब्रेह्मवि-
_ घपत्वनेकरूप्यमेकं लिड्म । असकृत्तसवमर्सीत्युक्तरन्यास।ः | ं
मानान्तरागस्यत्वपयूवता । एकावज्ञानन सवावज्ञान फलमू । खु-
.. ष्रिस्थितिप्रलयमवेदानि यमनप्रतिपाद कानि बचनान्ययवादा! । मू- कर
_. परा एवं। ने चानु्ठानमन्तरेण प्रयोजनाभावा, निाये सप्प
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