Book Image : सोच विचार  - Soch-Vichar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आप कया करते है ? ७ में भी चला । आगे उन्दे एक झन्य व्यक्ति सिले। पूछ़ा, “आप क्या करते हें ?” उत्तर सिला, 'सें ढाक्टर हूँ ।' सज्जन मित्र ने कहा, ओह आप डाक्टर है। बढ़ी खुशी हुई । नमस्ते डाक्टर जी, नमस्ते । खूब दर्शन हुए । कभी मकान पर दुर्शन दीजिए न ।--जी हाँ, यदद लीजिए सेरा काडे ।''रोड पर'” कोढठी हाँ, श्रापकी ही है। पघारिएगा। कृपा-झुपा । झच्छा नमस्ते ।' मुक्के इन उद्गारों पर बहुत प्रसन्नता हुई । किन्तु सुके प्रतीत हुआ कि सेरे दुयाराम होने से उन व्यक्ति का डाक्टर होना किसी ऋदर टीक्र बात है। लेकिन, द्याराम होना भी कोई गलत बात तो नहीं हें । किन्तु, मित्रवर कुछ झ्रागे बढ गये थे। में सी चला । एक तीसरे व्यक्ति मिल्ले । कोठी वाले मित्र ने नाम परिचय के बाद पूछा, “झाप क्‍या करते हैं ?” 'चकील हूँ ।' चकील्ष हैं। बढ़ी प्रसन्नता के समाचार हें । नमस्ते, वकील साहब, नमस्ते । मिलकर साग्य घन्य हुए । मेरे बहनोई का मतीजा इस साल लाँ फाइनल में है । मेरे लायक खिद्मत हो तो बतलाइए | जी हाँ श्राप ही की कोठी हैं। कभी पधारिएगा। । अच्छा जी नमस्ते, नमस्ते, नमस्ते ।' इस हर्षोदगार पर मैं असन्न ही हो सकता था । किन्तु, सुते लगा कि बीच में वकीलता के आ उपस्थित होने के कारण दोनों की सित्रता की राह सुगस हो गई है! यह तो ठीक है। डाक्टर या वकील या और कोई पेशेवर होकर व्यक्ति की मित्रता की पात्रता बढ जाय इसमें क्या झापत्ति ? इस सम्बन्ध मे सेरी झपनी अपात्रता मेरे निकट इठनी सुस्पष्ट मकर है, श्र




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