श्री विविध पूजा खंड -१-२ | Shri Vividh Pooja Sangrah Khand-1-2

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Shri Vividh Pooja Sangrah Khand-1-2 by विजय विद्याचन्द्र सूरी - Vijay Vidyachandra Suri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो घ्राचार् निर्वच्दर फाते म्डीपि जमपुर 'स्थानकवासीमान्य-वत्तीससूच्ों के मूलपाठ में जिनप्रतिमाओं की यात्रा, दर्शन और पूजा करने के अधिकार .. १-विल्ञाचारणस्सणु भंते ! तिरियें केवइए गइविसए पराणते ?, गोयमा ! से णं इश्रो एगेणं उप्पाएणुं भाखुसुत्तरे पव्चए समोसरणुं करेइ, कोइता तहई्िं चेइयाइं बंद, वंदित्ता वितिएणं उप्पापणं नंदीसरवरे दीवे समोसरणं करेड, करेड्ता तह्टि चेइयाइं चंद । वंदित्ता तथ्यों पड़िनियत्तइ, पड़िनिय- त्तदत्ता इहमागच्छु, श्रागच्छुइता इदं चेइयाइ' वंदइ । --भगवन्‌ ! विद्याचारणमुनि की तिर््ीं गति का विषय . कितना कहा है ?; गोतम ! विद्याचारणसुनि' यहाँ से एक उत्पाद ( डगल ) से साजुपषोस्तर पव॑त पर उतरते हैं; उतर के वहाँ रहे हुए जिनमन्दिरों को बंदन करते हैं। वंदून किये वाद वहाँ से दितीय उत्पाद से नन्दीश्वरद्वीप में उतरते हैं, उतर के वहाँ रहे हुए जिनमन्दिरों को वंदन करते हैं। बंदन किये बाद वहाँ से एक उत्पाद से यहाँ आते हैं श्यीर यहां के जिनचैत्यों ( जिनालंयों ) को वंदन करते हैं. । ल्‍ दे विज्ञाचारणुस्सणं भंते ! उद्डं केवइए गइविसप प्रणणते?, गोयमा ! से णुं इओ एगेणुं उप्पाएशुं- नंदणवण समोसरणं 'करेह । करेइता तह्नि चेइयाईं बंद, वंदित्ता वितिएणुं उप्सा- कदर न नर ही इमौगडी न




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