वसिष्टिका मण्डल | Vasisthka mandal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
474
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि ऋग्वेदुका सुवोघ भाष्य
४... सपयवों भरमाणा आंभज्ु मर चूत नमसा बाहरशा । पं
आजउह्दाना घतपु्दे प्रपद्वदुध्वयवों हविपा मज पध्चमू
श
२९
स्वाध्या३ वि दुरो देवयन्तो5दिश्रय रथयुर्देवताता 1
पूर्वी डिड्ी न मातरा रिहाणे समयुवो न समनेप्वज्ञन् डक
६... उत योपणे दिव्ये मही न उपासानक्ता सुडुचेव घेनु 1
घहिंपदा पुरुह्त मधानी आ यज्षिये सुविताय श्रयेताम् दर
5 विप्रा यज्षेषु मानुंपषु कारू मन्य वां जातवेद्सा यजप्यि ।
ऊर्ध्द नो अध्वर कृत हवेपु ता देवेपु बनथो वार्याणि ३९
[४1] (९९ १(सप्यवः) अम्िकी सेवा करनेवाले
अमित भरमाणा। ) घुटने टेककर पात्रकां भरते
उप ( चहिं: नमसा अझ्ी प्रचूज्त ) दम को हविद्र-
ध्यके साथ अग्निमें अर्पण करते है । दे ( अध्व-
पय' ) सध्चयु छोगो! घूतपृष्ठ प्पदत् ) घूतसे
सिंचित स्थूल घूत्र विंदुआंसि युक्त द्भेसुष्रिका
(हथिपा आजुद्ाना मजपध्ये | हविके ते थ दवन
फरनके समय परिशुद् करके दृवन करो ।
[५] (९०) स्वाध्याः देवयन्तः ) उत्तम कमें
फरनेवाले, देबताफी भक्ति करनेवाले (रथयु )
स्थकी कामना कनेचांढ देवताता दुर थि सादी-
थ्िय- ) यक्षफे मस्दरर द्वारोका साधय करते दे»
(समनेपु पूर्वी: ) यश्ोमें पूर्वकी ओर अग्रमाग
फऋरफे रदनेघाठ जुह मादिकोफों (दिंयुस न सातरा )
यरलकफोा गोमाताके ( रिदाणे ) चाटनेके समान
तथा ( अपुया ने ) सप्रगामी नदियों झेत्रॉंका अपने
उदकत लिंचन करनेके समान | स. औजन
अग्निको घूनसे शिचन फरने हैं ।
(51 (३९६५ ( उत दिव्ये याघण ) सौर दो दिव्य
युपतियां मद्दी य्दिपदा | धर्डी और दर्मोपर बैठने *
पड़ी ( पुर्दत सचघेनी ) ये हुनों दास प्रशसिित होने-
1उी तथा घन दादी ( यत्िये उपा सान का पूजनीय
उषा योर रात्री ( खुदुधघा थेनु इय ) उत्तम दु्च दने
चाउडी गा समान (नः सुचिताय था धयेतां )
शमाोर बस्पाणक लिये धर्म साधय देती रद्द ।
उप भौर रात्रीको - अद्दोरानदों यद्दा दो ख़ियोंकी उपमा दी
है । ये दिव्य खिया हैं, घनवाली हैं, बहुतों द्वारा प्रशसित दो
रही हैं। उत्तम युणवा्ली द्ोनेंदी वारण सब लोग इनकी प्रशंसा
करते हैं ।
« प्रघोनी योपणे * इन दो पदेंसें यद स्पष्ट दोठा दे
कि लिया भी धनवती हो सकती हैं, अपना निज धन अपने
पास अपने अधिकारमें रख सकती हैं । तथा ये धनवती दोनेके
कारण ' नः सुविताय माश्येतां * हमारा कत्याण करनेके
लिये हमें आधय देवें। अर्थात् दूसरोका कल्याण करनेके लिये
उनको आध्रय दे सकती हैं । इससे पता चलता है. कि ये छवियों
सवेया परत॑त्र नहीं थीं। अपना घन पास रखतीं, दूसरोको आाधय
देती और उनका कल्याण कर सकती थी । इस बेदमंत्रने खियों-
को अपना घन सपने पास रखनेवा अधि झार दिया दै।
[७1३२१ हे ( विप्रा जातवेदसा ) श्ञानी और
न उ-पन्न करनेवाले, ( सानुरेपु कारू ) मानवॉर्म
कुद्दाठतासे कमें करनेवाले दिव्य होताओ ! ( था
यजञध्यें मन्ये मापकी में यश के लिये स्तुति करता
हूं' (दृवपु नः अध्वर ऊष्च कृत) इन दृवनों में
हमारे दिंसा रहित यन्न क्मेको उच्च करो। (ता
देवेपु न्ार्याणि बनथः ) वे आप दोनों देवोमे दमांरे
घनोंको पडचाइये ।
मानव घर्म-- कारीगरढोग मानदॉमिं कुशक दो लौर
वे विशेष ज्ञानो तथा घनका ढत्पाइन करनेवाले दो । सब
दुसे कारीगरोंकी प्रशंसा करें । दे यश सरकार पार । यककों
सत्तम रीतिसे निमादें । ब्यवद्दार करनेवाठाको धन देखें ।
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