वसिष्टिका मण्डल | Vasisthka mandal

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Vasisthka mandal  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि ऋग्वेदुका सुवोघ भाष्य ४... सपयवों भरमाणा आंभज्ु मर चूत नमसा बाहरशा । पं आजउह्दाना घतपु्दे प्रपद्वदुध्वयवों हविपा मज पध्चमू श २९ स्वाध्या३ वि दुरो देवयन्तो5दिश्रय रथयुर्देवताता 1 पूर्वी डिड्ी न मातरा रिहाणे समयुवो न समनेप्वज्ञन्‌ डक ६... उत योपणे दिव्ये मही न उपासानक्ता सुडुचेव घेनु 1 घहिंपदा पुरुह्त मधानी आ यज्षिये सुविताय श्रयेताम्‌ दर 5 विप्रा यज्षेषु मानुंपषु कारू मन्य वां जातवेद्सा यजप्यि । ऊर्ध्द नो अध्वर कृत हवेपु ता देवेपु बनथो वार्याणि ३९ [४1] (९९ १(सप्यवः) अम्िकी सेवा करनेवाले अमित भरमाणा। ) घुटने टेककर पात्रकां भरते उप ( चहिं: नमसा अझ्ी प्रचूज्त ) दम को हविद्र- ध्यके साथ अग्निमें अर्पण करते है । दे ( अध्व- पय' ) सध्चयु छोगो! घूतपृष्ठ प्पदत्‌ ) घूतसे सिंचित स्थूल घूत्र विंदुआंसि युक्त द्भेसुष्रिका (हथिपा आजुद्ाना मजपध्ये | हविके ते थ दवन फरनके समय परिशुद् करके दृवन करो । [५] (९०) स्वाध्याः देवयन्तः ) उत्तम कमें फरनेवाले, देबताफी भक्ति करनेवाले (रथयु ) स्थकी कामना कनेचांढ देवताता दुर थि सादी- थ्िय- ) यक्षफे मस्दरर द्वारोका साधय करते दे» (समनेपु पूर्वी: ) यश्ोमें पूर्वकी ओर अग्रमाग फऋरफे रदनेघाठ जुह मादिकोफों (दिंयुस न सातरा ) यरलकफोा गोमाताके ( रिदाणे ) चाटनेके समान तथा ( अपुया ने ) सप्रगामी नदियों झेत्रॉंका अपने उदकत लिंचन करनेके समान | स. औजन अग्निको घूनसे शिचन फरने हैं । (51 (३९६५ ( उत दिव्ये याघण ) सौर दो दिव्य युपतियां मद्दी य्दिपदा | धर्डी और दर्मोपर बैठने * पड़ी ( पुर्दत सचघेनी ) ये हुनों दास प्रशसिित होने- 1उी तथा घन दादी ( यत्िये उपा सान का पूजनीय उषा योर रात्री ( खुदुधघा थेनु इय ) उत्तम दु्च दने चाउडी गा समान (नः सुचिताय था धयेतां ) शमाोर बस्पाणक लिये धर्म साधय देती रद्द । उप भौर रात्रीको - अद्दोरानदों यद्दा दो ख़ियोंकी उपमा दी है । ये दिव्य खिया हैं, घनवाली हैं, बहुतों द्वारा प्रशसित दो रही हैं। उत्तम युणवा्ली द्ोनेंदी वारण सब लोग इनकी प्रशंसा करते हैं । « प्रघोनी योपणे * इन दो पदेंसें यद स्पष्ट दोठा दे कि लिया भी धनवती हो सकती हैं, अपना निज धन अपने पास अपने अधिकारमें रख सकती हैं । तथा ये धनवती दोनेके कारण ' नः सुविताय माश्येतां * हमारा कत्याण करनेके लिये हमें आधय देवें। अर्थात्‌ दूसरोका कल्याण करनेके लिये उनको आध्रय दे सकती हैं । इससे पता चलता है. कि ये छवियों सवेया परत॑त्र नहीं थीं। अपना घन पास रखतीं, दूसरोको आाधय देती और उनका कल्याण कर सकती थी । इस बेदमंत्रने खियों- को अपना घन सपने पास रखनेवा अधि झार दिया दै। [७1३२१ हे ( विप्रा जातवेदसा ) श्ञानी और न उ-पन्न करनेवाले, ( सानुरेपु कारू ) मानवॉर्म कुद्दाठतासे कमें करनेवाले दिव्य होताओ ! ( था यजञध्यें मन्ये मापकी में यश के लिये स्तुति करता हूं' (दृवपु नः अध्वर ऊष्च कृत) इन दृवनों में हमारे दिंसा रहित यन्न क्मेको उच्च करो। (ता देवेपु न्ार्याणि बनथः ) वे आप दोनों देवोमे दमांरे घनोंको पडचाइये । मानव घर्म-- कारीगरढोग मानदॉमिं कुशक दो लौर वे विशेष ज्ञानो तथा घनका ढत्पाइन करनेवाले दो । सब दुसे कारीगरोंकी प्रशंसा करें । दे यश सरकार पार । यककों सत्तम रीतिसे निमादें । ब्यवद्दार करनेवाठाको धन देखें ।




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