रीतिकाल | Reetikal

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Reetikal by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+तज-काव्य-घारा देह हरनेवाले अँगरेजी के संपकं में नहीं छाते थे ! 'अेंगरेजो का झध्ययन करनेवाले वावू दो रहे थे, रुन्हें 'मपनी भाषा की क्या पढ़ी थी । 'ंगरेजी- सादिस्प स्वच्छन्द वातावरण में पनपा था । वद्द स्वतंत्रता की भावना्यों से पूर्ण था । शंगरेज लेखक मज़ुष्य-समाज के साथ साथ रन्मुक्त प्रति से भी: झनुरागात्मक संबंध स्थापित कर चुके ये । इन सबका प्रभाव भी इमारी भाप पर पड़ रददा था । घोरे-चीरे देशभक्ति फी भावनाओं की ध्वनि इमारे यहाँ भी सुनाई पढ़ने लगी । पर तत्कालीन और आधुनिक देशभक्ति में मद्दान अंतर दै। उस समय की देशभक्ति विदेशी शासन के साथ चल सकती थी । उस समय रवावलम्बन पर स्थित देशभक्ति की भावना की झोर मुकाव नहीं हुमा था। मुग्लकाल के पतनक्ाल फी देशव्यापी व्यवस्था से श्राण पाकर लोग एक बार सुख की सात ले रहे थे । वे यद्द हो 'चाइते थे कि देश उन्नति करे परन्तु साथ दो वे नवीन शान के प्रति झतुराग भी रखते थे । पक छोर ढनके मुँह से निकली हुई ऐधी रक्तियाँ शासन की प्रशंसा फर रददी थीं: -- *'झंप्रेज राज सुखस[ज सजे सब मारी थे घन दिदेस चलि जात यददे श्रवि ख्यारी ।” दूसरी '्रोर हनके ये इदूगार बाते थे कि वे झपनी दुर्देशा धवमति ' ादि का मार्मिकता से अनुभव कर खित्र दो रदे थे:-- 1 सब भाँति दैव प्रतिकूल शेर यदि नासा । | | शव तर वीरवर मारत की सब झाड़ा ॥| ] | अरब सुल सूरज को उदी नहीं इत हे दे। दर सो दिन दिर इत श्र सपनेहु नहिं ऐडे (| '. _ कुल लोगों को इन दोनों प्रकार की उक्तियों में विरोध प्रचीत टुधा । और छन्दोनि सामंजस्य र्यापित करने के लिए धनेरे कल्पनाएँ की । पर वालव में यदद उस काल की पिद्रेष पदृत्ति थी। शोग देशमक्ति तथा ' शजमक्ति में फोई विरोध नं सममने थे । यददी कारण दे कि 'मारतेस्दु- | काल के लेसकों में इमको दोनों मरक्मार के भाव मिलते हैं। अस्विदाइस ध्यास, प्रदापनारायय मिध, मदरीनारापश चौदसी, प्रेरघन श्ादि सभी दे




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