तत्त्वार्थश्लोक वार्तिकालंकार (खंड-4) | Tatvarth Shalokavartikalankar (Khand-iv)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
633
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)० तस्रार्पश्ोकवार्तिके
नहीं है | ऐसा दी श्री जिनन्याय प्रन्येंमिं साध दिया गया दे | आत्माके पुरुपार्थ या कारणोंसे तब दी
( तदानीमिव्र ) बना छिये गये विशुद्धिक भेदते झुद्धिका मेद होते इये क्षयोपदामका मेद दो जाने
पर ज्ञानमेद हो जाता है | प्रमाणप्रतिद्ध कार्यकारण मावेमिं कुचोथ नददीं उठा करते हैं !
अद्टातिरेकोदयाशात्यसी रुयातिदुश्खा। स्पतस्वाः सुरानारकाथ ।
स्वदेशादपे। प्राप्य सम्पचर्वपेकें भवम्रत्ययान्पुक्तिमाग प्रपन्ना। ॥ १ ॥
देवनारकियोंके मत्रप्रत्यय छवधिज्ञानका स्वामिविनिरूपण किया जा चुका दे । लतः
भवतर संपाति लोर कम अनुमार स्वयं जिज्ञाप्ता उत्पन्न दोती दै कि दूसरे प्रकारका लवविज्ञान मछा
किप्तकों कारण मानकर किन जीवेंकि दोता दे. ? इप्त प्रकार पिनम्र शिप्पोकी बलवती जिज्ञाप्ता दो
जनिपर श्री उमास्वामी मद्दारान भप्रिमसूत्रकेसरका मुखपसते प्रप्ताएण करते हैं, जिसकी कि
सुगन्वतते मब्यमघुकरेंको विशेष उछात प्राप्त दोवे ।
क्षयोपशमनिमित्तः पढ़िकटपः शेपाणाम् ॥ रर ॥
अवधिज्ञानावरणकर्मके सर्वघातित्पर्षकोंका ठदयामाव या फल नहीं देकर छिर जानात्वरूप
क्षेप र मविष्यमें उदय आनेवाले सरवघातिस्पर्धकोंका उर्दारणा दोकर उद्यावलीमें नहीं आना
दोते हुमे व्दाका वीं बना रददनाखरूप उपराम तथा देशवातिसर्षकोंका उदय दोनेपर कषयोपशम
अव्या दोती दै । उत क्षयोपशमकों निमित्त पाकर शेष कतिपय मनुष्य, तियेचोंके शुणप्रयय
अवधिज्ञान दोता दे । उस अवधिज्ञानके लनुगामी, अननुगामी, दीयमान, वर्षमान, अनस्थित और
अनवत्वित ये छइ प्रकाएके निकल्प हैं ।
किमर्यमिद्मित्याइ 1
यद्दीं कोई पूंछना है कि किस प्रयोजनकों सायनेके लिये यद सूत्र श्री उमाख्वांमी मद्दाराजने
कद्दा दे १ इस प्रकार जिज्ञाप्ता दोनेपर श्रीविधानन्द आचार्य उत्तर कदते हैं |
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गुणदेतुः स केपां स्यात् कियट्रेद इतीरिवुम् ।
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प्राह सूत्र क्षयेद्मादि संश्ेपादिष्टसंविदे ॥ १ ॥
बड़ गुगकों कारण मानकर उत्सन दोनेयाठा दूसरा अवविज्ञान मठा किन जीबोंके होगा !
घर उसके मेद कितने हें ? इस बातका प्रदर्शन करनेके छिये श्री उमास्वरामी मद्दाराज '' क्षॉयोपशाम-
निमिततः पढ़िकसतर शेपाणास, * इत्त प्रकार सूनको संकेपसे अमिन्रेत लर्पकी सम्विति कशनेके
छिपे बहुत भच्छा कदते दं |
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