तत्त्वार्थश्लोक वार्तिकालंकार (खंड-4) | Tatvarth Shalokavartikalankar (Khand-iv)

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Tattvarth Shalokavartikalangkar Khand-iv by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० तस्रार्पश्ोकवार्तिके नहीं है | ऐसा दी श्री जिनन्याय प्रन्येंमिं साध दिया गया दे | आत्माके पुरुपार्थ या कारणोंसे तब दी ( तदानीमिव्र ) बना छिये गये विशुद्धिक भेदते झुद्धिका मेद होते इये क्षयोपदामका मेद दो जाने पर ज्ञानमेद हो जाता है | प्रमाणप्रतिद्ध कार्यकारण मावेमिं कुचोथ नददीं उठा करते हैं ! अद्टातिरेकोदयाशात्यसी रुयातिदुश्खा। स्पतस्वाः सुरानारकाथ । स्वदेशादपे। प्राप्य सम्पचर्वपेकें भवम्रत्ययान्पुक्तिमाग प्रपन्ना। ॥ १ ॥ देवनारकियोंके मत्रप्रत्यय छवधिज्ञानका स्वामिविनिरूपण किया जा चुका दे । लतः भवतर संपाति लोर कम अनुमार स्वयं जिज्ञाप्ता उत्पन्न दोती दै कि दूसरे प्रकारका लवविज्ञान मछा किप्तकों कारण मानकर किन जीवेंकि दोता दे. ? इप्त प्रकार पिनम्र शिप्पोकी बलवती जिज्ञाप्ता दो जनिपर श्री उमास्वामी मद्दारान भप्रिमसूत्रकेसरका मुखपसते प्रप्ताएण करते हैं, जिसकी कि सुगन्वतते मब्यमघुकरेंको विशेष उछात प्राप्त दोवे । क्षयोपशमनिमित्तः पढ़िकटपः शेपाणाम्‌ ॥ रर ॥ अवधिज्ञानावरणकर्मके सर्वघातित्पर्षकोंका ठदयामाव या फल नहीं देकर छिर जानात्वरूप क्षेप र मविष्यमें उदय आनेवाले सरवघातिस्पर्धकोंका उर्दारणा दोकर उद्यावलीमें नहीं आना दोते हुमे व्दाका वीं बना रददनाखरूप उपराम तथा देशवातिसर्षकोंका उदय दोनेपर कषयोपशम अव्या दोती दै । उत क्षयोपशमकों निमित्त पाकर शेष कतिपय मनुष्य, तियेचोंके शुणप्रयय अवधिज्ञान दोता दे । उस अवधिज्ञानके लनुगामी, अननुगामी, दीयमान, वर्षमान, अनस्थित और अनवत्वित ये छइ प्रकाएके निकल्प हैं । किमर्यमिद्मित्याइ 1 यद्दीं कोई पूंछना है कि किस प्रयोजनकों सायनेके लिये यद सूत्र श्री उमाख्वांमी मद्दाराजने कद्दा दे १ इस प्रकार जिज्ञाप्ता दोनेपर श्रीविधानन्द आचार्य उत्तर कदते हैं | 6८८. कर न शा अप हज गुणदेतुः स केपां स्यात्‌ कियट्रेद इतीरिवुम्‌ । 2 ८८. ह 4 *, च् प्राह सूत्र क्षयेद्मादि संश्ेपादिष्टसंविदे ॥ १ ॥ बड़ गुगकों कारण मानकर उत्सन दोनेयाठा दूसरा अवविज्ञान मठा किन जीबोंके होगा ! घर उसके मेद कितने हें ? इस बातका प्रदर्शन करनेके छिये श्री उमास्वरामी मद्दाराज '' क्षॉयोपशाम- निमिततः पढ़िकसतर शेपाणास, * इत्त प्रकार सूनको संकेपसे अमिन्रेत लर्पकी सम्विति कशनेके छिपे बहुत भच्छा कदते दं |




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