कविता - कौमुदी भाग - 5 | Kavita Kaumudi Bhag - 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
765
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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और पौत्रों को अंकृत करेगा । मैं इसे फूल की तरह ही सेभालकर
रखता हूँ ।”
कोई पुरुष झंख रहा है--
अये छाजानुच्चैः पथिवचनमाकण्य यृहिणी ।
दिदोः कण यल्लात्सुपिहितवती दीनवदना ।
मयि. ध्यीणोपाये यद्कृत दृद्यावश्चुशवले ।
तद्न्तः्दाव्य॑ में त्वमिह पुनरुद्धवुमुचितः ॥
रास्ते मे किसी ने जोर से “लावा” कहा । यृद्दिणी ने उदास मुख
से बच्चे के कान यल्नपूर्वक बंद कर दिये । जिससे भूखा बच्चा छावा
का नाम न सुन सके । नहीं तो वह' साँगने लगेगा । मैं निरुपाय था ।
यह जानकर यूह्िणी की आँखें भर आई । यही मेरे हृदय का कॉँटा है ।
हे भगवामू, तुम्दीं उसे निकालने में समय हो ।”
किसी घर में यह दइ्य उपस्थित है--
मा. सेदीथ्विरमेहि वख्र रहितानड्टाय वालानिमा--
नायातस्तव चत्स दास्यति पिता श्रेवेयकं॑ वासखी ।
श्रुत्वैव॑ गृदिणी बचांखि निकटे कुल्यस्य निष्किश्वनों ।
निः्द्वस्याश्रुजलपुचप्छुतमुखः पान्थः पुनः प्रस्थितः ॥
'हे बेटा ! मत रोओ । तुम्हारे पिता जब आवेंगे और तुमको
चस्त्र-रहित देखेंगे तो तुमको वख्र और माला देंगे ।* गरीब पति झोपडी
के पास खा था । स््री का ऐसा वचन सुनकर उसने दुख की साँस
ली । आँसू से उसका सुख भीग गया और वह फिर लौट गया ।”
किसी घर में यह दइ्य उपस्थित हें--
कंथाखण्डसिदं प्रयच्छ यदि वा स्वाड्के यृद्दाणा्भकं ।
हिक्ते भूतलमत्र नाथ भवतः पृष्ठ पलालोच्चयः ।
दम्पत्योरिति जल्पतोर्निदि यदा चोरः प्रविष्टस्तदा ।
रध कपेरमन्यतस्सदुपरि झिप्त्वा स्टन्निरगतः ॥
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