बौद्ध तथा जैनधर्म | Bauddh Tatha Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)- १६ -
मानते थे । धम्मपद और उत्तराध्ययनसूत्र के अध्ययन से भी इन तथ्यों की पुष्टि
होती है ।
धम्मपद में यह उक्ति प्राप्त होती है कि मार्गों में अष्टांगिक भाग सवन्रेष्ठ है परन्तु
सम्पण प्रन्थ के अनुशीलन से यह भी स्पष्ट होता है कि शील समाधि भर प्रज्ञा थे तीन
ही दुःख विभुक्ति के मल साधन हैं तथा अष्टागिक माग इसी साधन-त्रय का परूवित
रूप है । उत्तराध्ययनसूत्र में मोक्ष के थार साघन कहे गये हैं. दान शान चारित्र
और तप । जैन आचार्यों ने सम्यक चारित्र में ही तप का अन्तर्माव कर परवर्तों साहित्य
में त्रिविघ साधना-मार्गों का विधान किया । जैन-दशन म यह रत्नत्रय नाम से प्रसिद्ध
हुआ । तुलनात्मक अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता ह कि उत्तराध्ययन के सम्यक दंदान
और सम्पक ज्ञान घम्मपद के समाधि और प्रज्ञा स्कन्घ के समकक्ष हूं । घम्मपद का
शील स्कघ उत्तराध्ययन के सम्यक थारित्र में सरलता से अन्तभत हो जाता है ।
वस्तुत बौद्ध और जैनघम के भाचार म मौलिक समानतायें हैं। बौद्धो के शील जैन
ब्रतों से सहज ही तुलनीय हैं । अहिसा के सम्बन्ध मे. दोनो मे किचित दृष्टिमद
अवश्य था और तस्वमीमासा के मौलिक अन्तर के कारण दोनो की ध्यान-पद्धतियों म
भी असमानताय थी परन्तु दोनो मे सबसे महत्वपूण भद यह था हि. जहाँ जनधमं
काय-बलेश और कठोर तप पर बल देता था बौद्धघर्म अतिवजना और मध्यम माग के
पक्ष म था । घम्मपद और उत्तराध्ययन से इन तथ्यों की भी पुष्टि होती है । धम्मपद
और उत्तराष्ययन दोनों में पुण्य-पाप की अवधारणाय प्राय समान हैं। दोनो में याशिकी
हिंसा तथा वर्ण भेद की आलोचना है। दोनो सदाचरण को ही जीवन म उच्चता
नीचता का प्रतिमान मानते हैं और ब्राह्मण की जन्मातुसारी नहीं अपितु कर्मानुसारी
परिभाषा प्रस्तुत करते हूं। साथ ही दोनो मे आदश भिक्षु यति के गुण प्राय समान
शब्दों म वर्णित हु ।
दोनों प्रन्थो में प्राप्त चित अप्रमाद कषाय तथा तुष्णा आदि मनोवैज्ञानिक
तथ्यों का विवेचन हे । साधारण रूप से जिसे जन-परम्परा जीव कहती है बौद्ध लोग
उसीके लिए चित्त शब्द का प्रयोग करते ह । उनके लिए चित्त कोई नित्य स्थायी
स्वतन्त्र पदाथ नहीं है । चित्त की सत्ता तभी तक है जब तक इद्रिय तथा प्राह्म विषयों
के परस्पर घात-प्रतिघात का अस्तित्व है । ज्यो्ी इद्रियो तथा बिषयों के परस्पर
'घात प्रतिघात का अन्त हो जाता है त्योंही चित्त भी समाप्त या शान्त हो जाता है ।
बोद्धघम में बित्त मन और विज्ञान को प्राय एक ही अथ का माना गया है। जेन
दृष्टिकोण से जिसके द्वारा मनन किया जाता है वह मन है । उत्तराष्ययन के अनुसार
मन भी एक प्रकार का द्रव्य है. जिसके द्वारा सुख-दु ख की अनुभति होती है । दूसर
दाब्दो में इद्रियो और आत्मा के बीच की कही मन है । घम्मपद के चिसवग में चित
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