भारतीय न्याय - शास्त्र एक अध्ययन | Bharatiy Nayay Shastra Ek Adhyayan

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Bharatiy Nayay Shastra Ek Adhyayan by ब्रह्ममित्र अवस्थी - Brahmmitra Avasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० व्यवस्थीकरणा का है। पहले काल की विद्ेषता है उसकी महान मौलिकता भौर नवीनता, दूसरे की पूर्ण विशदीकरण श्रोर तीसरे की सूक्ष्मीकरण । काल विभाजन की रेखा की ये सीमाए कोई लक्ष्मण रेखा नही है, भ्रतेक बार ये शिथिल होती दिखाई देती हैं , उंदाहरणा्थ १४ वी शताब्दी से पूर्व ताकिक- रक्षा श्रौर सप्तपदार्थी जैसे कारिका या गुटका प्रन्थ भी उपलब्ध होते है, श्रौर परवर्त्ती काल में शकर मिश्र श्रौर विश्वनाथ की वेशेषिक आर न्याय सूत्रो पर वुत्तिया भी लिखी गयी । किन्तु इन एकाध कृतियों के झाषार पर पुर्वोबत धारणाश्रो पर कोई व्याघात नहीं भ्राता, क्योकि ये धारणएं सामान्य प्रवृत्तियों पर श्राश्रित है, एव उन प्रवृत्तियो मे तात्विक श्रस्तर है । न्याय श्ौर बेशेषिक दर्शनों का पारस्परिक सम्बन्ध समय समय पर बदलता रहा है । प्रथम काल मे इनकी पृथक एवं स्वतस्त्र सत्ता दुष्टिगोचर होती है, यद्यपि विवेचनीय विषयों की दृष्टि से दोनों मे परस्पर समानता भी दिखाई देती है । उत्तरोत्तर टीका प्रटीकाद के तिमांणा के बाद जब ये विरोधी रूप मे प्रतीत होने लगे तभी तृतीय काल मे इनके एकीकरण को प्रवृत्ति का उदय हुआ । तकंसग्रह भाषापरिच्छेद श्रादि ग्रत्थो मे इसी प्रवृत्ति के दर्शन होते है, जिनका निर्माण दोनो के श्रष्ठ तत्वों को ग्रहण करते हुए ही किया गया है । न्यायशास्त्र के विकास क्रम का. वर्गीकरण करने के श्रनन्तर हमारे सम्मुख सब प्रथम महत्वपूर्ण प्रइन है, गौतम श्रौर कशाद के सूत्रो के निर्माण काल का, ये सूत्र ही न्याय श्र वैज्षेषिक दर्शनों के भ्राधार है, तथा ये ही न्याय शभ्रौर वंश षक दर्शन के श्रब तक उपलब्ध ग्रत्थो में प्राचीनतम है । इसके निर्माण काल के निश्चय के लिए सर्व प्रथम हमे इनके सूत्रो के निर्माता के सम्बन्ध में विविध मात्यताम्रों का विद्लेषण करना झावइयक है । पथपुराण स्कन्द पुराण गान्धर्वतन्त्र नेपधीय चरित तथा विश्वनाथ वृत्ति श्रादि प्रत्थो मे न्याप सूत्रों के रचपिता के रूप में गौतम का उल्लेख किया. गया है ।' इसके १. (क) पश्चपुराण उ० खण्ड २६३ (ख) स्कर्द कलिका ख०्झ् १७ (ग) न्यायसूत्र वृत्ति १८२ (प) नेदधीय चरितम्‌ १७. (ड) स्यायसूत्र वृत्ति पृ० १८४५




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