प्रवचनसार-प्रवचन भाग ५ | Pravachansar Pravachan Volume-5
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
889 KB
कुल पष्ठ :
26
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाथा ११४ ( १३
.सिफं यह है कि दुःख क हपनिक चीज है हम #हपनाऐ ऐसी करते हैं कि हाय
वह कसा धनी हो गया है हम उससे गरीब हैं हम वया घनी, हैं हमसे भी
. ज्यादा धनी इस दुनियांमें दुसरे श्रादमी पड़े हुए हैं, इस लड़केको ज्ञान कब
झायेगा कसी जिन्दगी बितायेगा ध्नेको प्रकारकी कल्पनाए' मानस झभागारमें
. खब्ती रहती हैं। -श्रगर हमें ज्ञान हो जाय तो हम श्रपनी श्रात्मा जो चंतन्य
: स्वरूप वाली है उसोके गुणोंकी श्रोर श्रपनी धक्तिको लगावें । मैं तो एक सामा-
,न्य स्वरूप हूं ।.धगर घनमें सुख होता तो भरत चक्रवर्ती, ऋषभदेव भगवादु
तथा धान्तिनाथ. भगवान् ने फिर क्यों इस धघनसे मोह छोड़ दिया है। मैं
' मनको, श्रहितरूप नहीं मान सका 'श्ौर श्रपनी श्रात्माकों हित्रूप ' न मानकर
पर पदार्थोंको मानता रहा हूं यही संस्कार बेचेनी कर रहा है । जिसके ज्योति
नहीं वह प्रादमी: यही सोचेगा कि भगवाच् भी बेववूफ है वह उनके गुणोंकी
: परख- नहीं कर .सकता. है । बह भगवाचुके स्वरूपको नहीं समझ सकता है
': फिर महत्त्व कंसे जाने । जिनको पूज रहे हैं उनको वेभवसे भ्रतीत जो न माने,
वह भगवान के बारेमें यह नहीं सोच सकता कि भगवादने विवेकका भ्रनुरण
किया है । इस दुनियामें कई लोगों ने भगवानको श्रन्यथा हो समभा हैं । कुछ
! विरले बुद्धिमान हो-भगवान्-को मानते हैं क्योंकि ज्योतिके श्रनुभव वालों की
हष्टिमें-ही.यही बात है ..कि उन्होंने केवल्य श्रवस्था को प्राप्त कर निर्विकत्प
ज्ञान को ज्ञाप्त किया है.। भगवानुकी-पुजा भी कर लें श्र भगवादकों नहीं
समभक:पायें'ऐसे भाई भी इस चमय है।
अया.! ,ज़ब तक हममें, गुणाकी बात नहीं झ्राती तब तक जरा भी दूसरे
५ -के तथ्य ज्ञात जहीं हो सकते जरा भी दूसरेके गण ज्ञात नहीं हो सकते हैं । जो
*,गुणको चहीं जानते. वे किसोको .क्या पहुचानेंगे, नहीं पहचान सकते हैं।
श/भापर जब, भगवादु की पूजा करते हैं उस स्मय सूर्ति चेहरा देखकर यह
+ कहते: हो कि भगवान् हुंस-रहा है तो तुम पहले यह सोचो कि तुम्हारे मनमें
-पढेंले , कुछ :प्रफुल्लता है इसी से तुम्हारे- लिए ऐसा दिखाई देता है । कभी कभी
7 हुम्हें-चेह रा- रज़में दिखता है उस समय तुम्हारा मन किसी रंजमें होगा भरत
' देह रंजमें दिखता हे ।- कोई. मनुष्य बहुत उदार है उसकी उदारताकी पहिचान .
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