प्रवचनसार-प्रवचन भाग ५ | Pravachansar Pravachan Volume-5

Pravachansar Pravachan Volume-5 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाथा ११४ ( १३ .सिफं यह है कि दुःख क हपनिक चीज है हम #हपनाऐ ऐसी करते हैं कि हाय वह कसा धनी हो गया है हम उससे गरीब हैं हम वया घनी, हैं हमसे भी . ज्यादा धनी इस दुनियांमें दुसरे श्रादमी पड़े हुए हैं, इस लड़केको ज्ञान कब झायेगा कसी जिन्दगी बितायेगा ध्नेको प्रकारकी कल्पनाए' मानस झभागारमें . खब्ती रहती हैं। -श्रगर हमें ज्ञान हो जाय तो हम श्रपनी श्रात्मा जो चंतन्य : स्वरूप वाली है उसोके गुणोंकी श्रोर श्रपनी धक्तिको लगावें । मैं तो एक सामा- ,न्य स्वरूप हूं ।.धगर घनमें सुख होता तो भरत चक्रवर्ती, ऋषभदेव भगवादु तथा धान्तिनाथ. भगवान्‌ ने फिर क्यों इस धघनसे मोह छोड़ दिया है। मैं ' मनको, श्रहितरूप नहीं मान सका 'श्ौर श्रपनी श्रात्माकों हित्रूप ' न मानकर पर पदार्थोंको मानता रहा हूं यही संस्कार बेचेनी कर रहा है । जिसके ज्योति नहीं वह प्रादमी: यही सोचेगा कि भगवाच्‌ भी बेववूफ है वह उनके गुणोंकी : परख- नहीं कर .सकता. है । बह भगवाचुके स्वरूपको नहीं समझ सकता है ': फिर महत्त्व कंसे जाने । जिनको पूज रहे हैं उनको वेभवसे भ्रतीत जो न माने, वह भगवान के बारेमें यह नहीं सोच सकता कि भगवादने विवेकका भ्रनुरण किया है । इस दुनियामें कई लोगों ने भगवानको श्रन्यथा हो समभा हैं । कुछ ! विरले बुद्धिमान हो-भगवान्‌-को मानते हैं क्योंकि ज्योतिके श्रनुभव वालों की हष्टिमें-ही.यही बात है ..कि उन्होंने केवल्य श्रवस्था को प्राप्त कर निर्विकत्प ज्ञान को ज्ञाप्त किया है.। भगवानुकी-पुजा भी कर लें श्र भगवादकों नहीं समभक:पायें'ऐसे भाई भी इस चमय है। अया.! ,ज़ब तक हममें, गुणाकी बात नहीं झ्राती तब तक जरा भी दूसरे ५ -के तथ्य ज्ञात जहीं हो सकते जरा भी दूसरेके गण ज्ञात नहीं हो सकते हैं । जो *,गुणको चहीं जानते. वे किसोको .क्या पहुचानेंगे, नहीं पहचान सकते हैं। श/भापर जब, भगवादु की पूजा करते हैं उस स्मय सूर्ति चेहरा देखकर यह + कहते: हो कि भगवान्‌ हुंस-रहा है तो तुम पहले यह सोचो कि तुम्हारे मनमें -पढेंले , कुछ :प्रफुल्लता है इसी से तुम्हारे- लिए ऐसा दिखाई देता है । कभी कभी 7 हुम्हें-चेह रा- रज़में दिखता है उस समय तुम्हारा मन किसी रंजमें होगा भरत ' देह रंजमें दिखता हे ।- कोई. मनुष्य बहुत उदार है उसकी उदारताकी पहिचान .




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