मूल संस्कृत उद्धरण भाग-५ | Mool Sanskrit Uddharan Part-5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
476
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अ्रस्तावना श्
देवी, मिछते हैं नो ( कम से कम अन्तिम दो ) सेदों के प्राचीनतम भागों में
अज्ञात हैं, किन्तु फिर भी यूनानियों के पोसीढन, प्रेस, गौर एफ्रोडाइट फे
अनुरूप हैं । फिर भी, हस प्रकार के मानवत्वारोपण या तो उस शारम्मिक सूख
ग्रवत्ति के परिणाम हो सकते हैं जो सनुष्यों को प्रकृति के प्रत्येक विभाग के सथा
मानव जीवन भौर कार्यों के भघी चर्कों तथा दिव्य प्रस्तुतीकरणों के सजन की
भोर प्रवत्त करती है; भथवा ये जंशतः कदपना तथा भनुमान की उस वाद की
प्रक्रिया से, जो समान परिणामों की छोर ले लाती है, घोर व्यवस्थित पूर्णता के
सस प्रेम ढे परिणाम स्वरूप तरपन्न हुये हो सकते हैं ल्लो मनुष्यों को अपने
आारश्मिक पुराकथाधास् की रिक्ततार्भों की पूर्ति करने तथा उसे सतत
सम्वन्घित और परिचरतिंत करते रहने फे छिये प्रेरित फरता है । इस मन्तिम
प्रकार की समानताये, यद्यपि ये किसी भी प्रकार भाकर्मिक नहीं हें, भनि-
चार्यततः उन समान प्रक्कियार्भा के परिणामों से भिन्न कुछ नहीं, जो एक टी
सामान्य प्रचस्ति तथा च्चारिप्रिफ विदिष्टता से युक्त राष्ट्रों में चलती रहती हैं ।
किन्तु यूनानियों और भारतीयों के धार्मिक विचारों के वीष्च वे प्राची नतर साम्य,
'जिनका पहले उदलेख किया जा चुका है, एक मिन्न प्रकार के और निश्चित रूप
से एक ऐसे मौलिक पुराकथाधास्र के भवदेप हैं जो दोनों दी जातियों के
समान पूर्वजों की सम्मिछित निधि था। यद्द इस तथ्य द्वारा व्यक्त दोता
है कि, जिन उदादरणों का मैंने उपठेख किया है, उनमें न फेवछ कार्यों
की चरनू दोनों ही साहि्यों में समान देवों के नामों तक की भनुरूपता
सिछती है ।
(२) वेदिक पुराकथाशासख्र की प्राचीनता और विशिष्ता
किन्तु सामान्य चिद्वानू के छिये वेदिक पुराकधाशास्न का सदश्व केवल
इस परिस्थिति मात्र में नि्ित नहीं है कि कुछ धार्मिक घारणायें, तथा दो
या तीन देवों के नाम ऐसे हैं जिनकी यूनानी के साथ समानता है । इससे
अधिक महद्वपू्ण इस यात पर ध्यान देना है कि भारतीय काब्य के प्रावीन-
तम भवदोप, जो राष्ट्रीय देवों की स्तुति में रचित सूक्तों में निष्टित तथा हमर
शर देसियठ से कहां भधिक पूर्वकाठ की रचनाएँ हैं, धार्मिक विकास के
उससे कहीं भधिक प्राचीन काल को ध्यक्त करते हैं भौर भपने निर्माण के
प्राचीनतम श्तर पर ऐसी चिविध पुराकथाओं का उदघाटन करते हैं जिन्होंने
कुछ दाताब्दियों बाद पुक निश्चित शौर मान्य स्वरूप घारण कर लिया ।*
* देखिये प्रो० मेंक्समुलर का “कम्पेरेटिव माइयॉलोजी' नामक लेख
१ जावसफोड एसेज, १८५६; भर चिप्स में पुनर्मू द्वित ) ।
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