ब्रजभाषा सूर-कोष भाग - २ | Brajbhasha Soor - Kosh Part - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
69 MB
कुल पष्ठ :
1062
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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निर्लेप--वि. [ सं. ] संबंध व रखनेवाला, निलिप्त ।
निलॉमि, निर्लीमी- बि [सं.] लोभ-लालच नकरनेवाला ।
निर्वेश, लिर्वस--वि. [ सं.. निर्वश ] जिसके बंद में कोई
नहीं ।उ.--क) करत है गंग निर्वेश जाहीं--
र५५६ । (ख) इनको कपट करे मथुरापति तौ हैँ है
निर्वस--र५६७ |
निवंचन--संज्ञा पु. [ सं. ] (१) निद्चित रूप से बात
कहना । (२) दाब्द की रचना या व्यृत्पत्ति-विवेचन ।
निवंसन -घवि. [ सं. ] चगा, वस्त्रहीन ।
निवेद्ण, निवहदन--संज्ञा पूं. [ सं. निर्वाह ] निर्वाह ।
निवंदन --क्रि. अ. [सं, निवद्दन] निभना, पालन होना ।
निवाक वि, [ सं. ] जो मौन या चुप हो |
निर्वाक्य--वि, [ सं. 1 जो बोल न सके, गू गा |
निर्वाणु, निर्वान--वि. [ सं. निर्वाण ] (१) बूझा हुआ ।
(२) भस्त, डूबा हुआ । (३) घोमा पड़ा हुआ ।
(४) सरा हुमा ।
संज्ञा पु, [सं. निर्वाण] (१) बुकना । (२) समाप्ति |
(२) अस्त, डूबना । (४) दांति, (५) सुक्ति, मोक्ष |
उ.--(क) यह सुनि कै तिहि उपज्यो ज्ञान । पायो पुनि
तिहिं पद-निर्वान- ४-१२ । (ख) सूर प्रभु परस लहि
लह्यी निर्वान तेहिं सुरन श्राकास जे जैत यह धुनि
सुनाई-- २६५०८)
निवासक संज्ञा पूं. [स.] देशनिकाला देनेवाला ।
निर्वासन--संज्ञा पं, [स.] (१) बघ । (९२) देशनिकाला |
निवांह--संज्ञा पं. [स.] (१) क्रम या परंपरा का पालन ।
(२) (वचन श्रादि का) निर्वाह । (३) समाप्ति।
निवाहच--बि. [सं] पिर्वाह करने या लिशानेवाला )
निवाहना--कि. श्र. [सं. निर्वाह] निभाना |
निर्चिकह्प--वि. [सं.] स्थिर, मिदिचित ।
निर्चिकार--वि. [सं.] जिसमें दोष या परिवतन न हो ।
निर्विदत--वि. [सं] जिसमें विघ्न न हो |
क्रि. वि.--घिना किसी विघ्न या बाधा के !
निर्विचार--वि. [सिं.] विचाररहित |
निर्विवाद--वि. [स.] बिना विवाद था कड़े का |
निर्विप--वि. [सिं.] जिसमें विष न हो ।
निचीये--वि. [सं.] जिसमें बल श्रीर तेज न हो |
निर्वेद--संज्ञा पु. [सं,] ( १) श्पभान ! (२) वैराग्य ।
(३) दुख, विषाद ।
निर्वेदी--संश पुं. [सं. नि
भी परे है ।
निर्व्यलीक--वि. [सं.] छल-कपट-रहित ।
निर्व्याज--वि. [सं ] (१) निष्कपट । (२) बाघारहित ।
निव्याधि--वि, [सं,] रोग था व्याधि से मुक्त ।
निहरण--संज्ञा पूं, [स.] बाव जलाना ।
निहेतु--वि- [सिं.] जिसमें हेतु या कारण न हो ।
निलज--वि. [सिं. निलंज] लज्जाहीन, बेशर्म । उ.--हीं
तो जाति गँवार, पतित हों, निपट निलज,खिसिद्घानो---
श-१६६ ।
निलजइ; निलजई--संज्ञा स्त्री, [सं. निलेज + ई(प्रत्य)]
सिलंज्जता, बेदर्मी, बेहयाई । दे
निलजता; निलजताई--संज्ञा स्त्री. [सं, निलंजता] बेशर्भी;
बेहयाई, निलंज्जता | ः
निलजी--वि, स्त्री [हिं. निलेज] लाजहीन (स्त्री), ।
: +वेद] बह (नह्म) जो बेवों से
निलज--वि. सं. निर्लज] लज्जाहीन, बेदास । उ.--
इनके गदद रहि तुम सुख मानत । श्रति निलज, कट
लाज न श्रानत--१-र८४ ।
निलय; निले--संश्ञा पं. [सि.] (१) घर | ,उ.- नील निले
मिलि घंदा बिविधि दामिन मनो प्रोड्स खंगार सोमित
हरि हीन - सा, उ, ३८ । (२) स्थाल ।
निवछरा; निवछरो; निवद्रो--वि.[सं. निवत्त](ऐसासमय)
जब बहुत काम-काज न हो, फुसत का या खाली
(समय) । उ.--ग्रबहि निवब्धरो समय, सुचित है,
दृभ तो निधरक कीजे--२-१४१ ।
निवरा-- वि. स्त्री, [स.,] जिसके चर न हो, कमारी ।
निवसथ - संशा पं. [सं..] (१) गाँव । (९) सीमा ।
निवसन--संश्ञा पुं. [सं. निसू +-वसन] (१) घर ।(२) वस्त्र ।
निवसना--क्रि. अर, [हिं. निवास] रहना, निवास करना ।
निवह--संज्ञा प्. [सं.] (१) समूह । (२१ एक चाय-रूप।
निवाई--वि. [सं, नव] (१) नया, चवीन । (२) श्रवोखा,
प्रदुभुत । उ.--पुनि लदमी यों विनय सुनाई । डरौं
रूप यह देखि निंवाई ।
निवाज---वि. [फा, निवाजू] श्रदुप्रहू फरनेवाला, कृपालू |
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