ब्रजभाषा सूर-कोष भाग - २ | Brajbhasha Soor - Kosh Part - 2

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Brajbhasha Soor-kos Part -2 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १०१४ 9 निर्लेप--वि. [ सं. ] संबंध व रखनेवाला, निलिप्त । निलॉमि, निर्लीमी- बि [सं.] लोभ-लालच नकरनेवाला । निर्वेश, लिर्वस--वि. [ सं.. निर्वश ] जिसके बंद में कोई नहीं ।उ.--क) करत है गंग निर्वेश जाहीं-- र५५६ । (ख) इनको कपट करे मथुरापति तौ हैँ है निर्वस--र५६७ | निवंचन--संज्ञा पु. [ सं. ] (१) निद्चित रूप से बात कहना । (२) दाब्द की रचना या व्यृत्पत्ति-विवेचन । निवंसन -घवि. [ सं. ] चगा, वस्त्रहीन । निवेद्ण, निवहदन--संज्ञा पूं. [ सं. निर्वाह ] निर्वाह । निवंदन --क्रि. अ. [सं, निवद्दन] निभना, पालन होना । निवाक वि, [ सं. ] जो मौन या चुप हो | निर्वाक्य--वि, [ सं. 1 जो बोल न सके, गू गा | निर्वाणु, निर्वान--वि. [ सं. निर्वाण ] (१) बूझा हुआ । (२) भस्त, डूबा हुआ । (३) घोमा पड़ा हुआ । (४) सरा हुमा । संज्ञा पु, [सं. निर्वाण] (१) बुकना । (२) समाप्ति | (२) अस्त, डूबना । (४) दांति, (५) सुक्ति, मोक्ष | उ.--(क) यह सुनि कै तिहि उपज्यो ज्ञान । पायो पुनि तिहिं पद-निर्वान- ४-१२ । (ख) सूर प्रभु परस लहि लह्यी निर्वान तेहिं सुरन श्राकास जे जैत यह धुनि सुनाई-- २६५०८) निवासक संज्ञा पूं. [स.] देशनिकाला देनेवाला । निर्वासन--संज्ञा पं, [स.] (१) बघ । (९२) देशनिकाला | निवांह--संज्ञा पं. [स.] (१) क्रम या परंपरा का पालन । (२) (वचन श्रादि का) निर्वाह । (३) समाप्ति। निवाहच--बि. [सं] पिर्वाह करने या लिशानेवाला ) निवाहना--कि. श्र. [सं. निर्वाह] निभाना | निर्चिकह्प--वि. [सं.] स्थिर, मिदिचित । निर्चिकार--वि. [सं.] जिसमें दोष या परिवतन न हो । निर्विदत--वि. [सं] जिसमें विघ्न न हो | क्रि. वि.--घिना किसी विघ्न या बाधा के ! निर्विचार--वि. [सिं.] विचाररहित | निर्विवाद--वि. [स.] बिना विवाद था कड़े का | निर्विप--वि. [सिं.] जिसमें विष न हो । निचीये--वि. [सं.] जिसमें बल श्रीर तेज न हो | निर्वेद--संज्ञा पु. [सं,] ( १) श्पभान ! (२) वैराग्य । (३) दुख, विषाद । निर्वेदी--संश पुं. [सं. नि भी परे है । निर्व्यलीक--वि. [सं.] छल-कपट-रहित । निर्व्याज--वि. [सं ] (१) निष्कपट । (२) बाघारहित । निव्याधि--वि, [सं,] रोग था व्याधि से मुक्त । निहरण--संज्ञा पूं, [स.] बाव जलाना । निहेतु--वि- [सिं.] जिसमें हेतु या कारण न हो । निलज--वि. [सिं. निलंज] लज्जाहीन, बेशर्म । उ.--हीं तो जाति गँवार, पतित हों, निपट निलज,खिसिद्घानो--- श-१६६ । निलजइ; निलजई--संज्ञा स्त्री, [सं. निलेज + ई(प्रत्य)] सिलंज्जता, बेदर्मी, बेहयाई । दे निलजता; निलजताई--संज्ञा स्त्री. [सं, निलंजता] बेशर्भी; बेहयाई, निलंज्जता | ः निलजी--वि, स्त्री [हिं. निलेज] लाजहीन (स्त्री), । : +वेद] बह (नह्म) जो बेवों से निलज--वि. सं. निर्लज] लज्जाहीन, बेदास । उ.-- इनके गदद रहि तुम सुख मानत । श्रति निलज, कट लाज न श्रानत--१-र८४ । निलय; निले--संश्ञा पं. [सि.] (१) घर | ,उ.- नील निले मिलि घंदा बिविधि दामिन मनो प्रोड्स खंगार सोमित हरि हीन - सा, उ, ३८ । (२) स्थाल । निवछरा; निवछरो; निवद्रो--वि.[सं. निवत्त](ऐसासमय) जब बहुत काम-काज न हो, फुसत का या खाली (समय) । उ.--ग्रबहि निवब्धरो समय, सुचित है, दृभ तो निधरक कीजे--२-१४१ । निवरा-- वि. स्त्री, [स.,] जिसके चर न हो, कमारी । निवसथ - संशा पं. [सं..] (१) गाँव । (९) सीमा । निवसन--संश्ञा पुं. [सं. निसू +-वसन] (१) घर ।(२) वस्त्र । निवसना--क्रि. अर, [हिं. निवास] रहना, निवास करना । निवह--संज्ञा प्‌. [सं.] (१) समूह । (२१ एक चाय-रूप। निवाई--वि. [सं, नव] (१) नया, चवीन । (२) श्रवोखा, प्रदुभुत । उ.--पुनि लदमी यों विनय सुनाई । डरौं रूप यह देखि निंवाई । निवाज---वि. [फा, निवाजू] श्रदुप्रहू फरनेवाला, कृपालू |




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