संपत्ति - दान - यज्ञ | Sampatti Dan Yagya

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Sampatti Dan Yagya by गाँधीजी - Gandhiji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सब संपति रघुपति कं आही श्७ भी रह सकती है । इसलिए हर एक व्यक्ति के पास पहुँचकर विचार समझाना हे और दान-पत्र हासिल करना हूं । भ् रद मर श्र संपत्ति-दान-यज्ञ बहुत गहरी चीज हूं । हम भूदान-यज्ञ में हर एक से भूमि माँगते हे । खास दान-पत्र लेते है, उस पर उसके हस्ताक्षर आदि लंते हे, सरकार उसे मंजूर करती हूं, तब वह अमल में आता है। सी पूरी योजना इस यज्ञ मे नहीं हैं । इसलिए जो व्यक्ति दान- पत्र लिखकर देंगा, वहीं अपने अतर्यामी भगवान्‌ को साक्षी रखकर अपना वचन पालन करेगा और हिसाव भी रखेगा । उस दान का पूर्ण उपयोग हमारे कहने के अनुसार करने की जिम्मेदारी उसी पर हे । यह भूमि के समान एकवारगी दान देने की वात नही हू । हर साल हिस्स्सा देना पड़ेगा । अत उसको अपना जीवन नेष्ठिक वनाने का काम करना होगा । अंदर की निप्ठा जगनी चाहिए । है हि भ्द भर “सब सपति रघुपति के आही ।” तव छठा हिस्सा देने की वात गौण है । होना तो यह चाहिए कि अपना सब कुछ समाज को देंना चाहिए और फिर अपनें शरीर के लिए उसमे से थोडा-सा छेना चाहिए । परन्तु अभी समाज में इस तरह का इन्तजाम नही हू गौर तुरन्त होनेवाला भी नहीं है । इसलिए अभी छठा हिस्सा दे दिया जाय और वाकी जो वचे, उसमें से ओर देने का सोचा जाय । छठा हिस्सा देने का मतलव यह है कि जीवन के'लिए एक निष्चय करके वह देना हू । उतना हिस्सा नहीं देते हें तो हम भी पापी वनते हू और हमारा जीवन भी पापी बनता हे । इसलिए देना कत्तंव्य मानना चाहिए । दूसरा कितना देता है, इसकी चिन्ता हमें नही करनी चाहिए । वल्कि स्वयं हमने कितना




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