संपत्ति - दान - यज्ञ | Sampatti Dan Yagya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सब संपति रघुपति कं आही श्७
भी रह सकती है । इसलिए हर एक व्यक्ति के पास पहुँचकर विचार
समझाना हे और दान-पत्र हासिल करना हूं ।
भ् रद मर श्र
संपत्ति-दान-यज्ञ बहुत गहरी चीज हूं । हम भूदान-यज्ञ में हर एक
से भूमि माँगते हे । खास दान-पत्र लेते है, उस पर उसके हस्ताक्षर
आदि लंते हे, सरकार उसे मंजूर करती हूं, तब वह अमल में आता
है। सी पूरी योजना इस यज्ञ मे नहीं हैं । इसलिए जो व्यक्ति दान-
पत्र लिखकर देंगा, वहीं अपने अतर्यामी भगवान् को साक्षी रखकर
अपना वचन पालन करेगा और हिसाव भी रखेगा । उस दान का पूर्ण
उपयोग हमारे कहने के अनुसार करने की जिम्मेदारी उसी पर हे ।
यह भूमि के समान एकवारगी दान देने की वात नही हू । हर साल
हिस्स्सा देना पड़ेगा । अत उसको अपना जीवन नेष्ठिक वनाने का
काम करना होगा । अंदर की निप्ठा जगनी चाहिए ।
है हि भ्द भर
“सब सपति रघुपति के आही ।” तव छठा हिस्सा देने की वात
गौण है । होना तो यह चाहिए कि अपना सब कुछ समाज को देंना चाहिए
और फिर अपनें शरीर के लिए उसमे से थोडा-सा छेना चाहिए ।
परन्तु अभी समाज में इस तरह का इन्तजाम नही हू गौर तुरन्त होनेवाला
भी नहीं है । इसलिए अभी छठा हिस्सा दे दिया जाय और वाकी जो
वचे, उसमें से ओर देने का सोचा जाय । छठा हिस्सा देने का मतलव
यह है कि जीवन के'लिए एक निष्चय करके वह देना हू । उतना हिस्सा
नहीं देते हें तो हम भी पापी वनते हू और हमारा जीवन भी पापी बनता
हे । इसलिए देना कत्तंव्य मानना चाहिए । दूसरा कितना देता है,
इसकी चिन्ता हमें नही करनी चाहिए । वल्कि स्वयं हमने कितना
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