बेनीपुरी ग्रंथावली खंड २ | Benipuri Granthawali Khanda II

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Benipuri Granthawali Khanda Ii by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवचन १३ तुमको मारा है । ध्च्छा श्रव खाग्ो । साकर तुम अब उघर स्ाना, हम तुमको प्रमोफोन रिकार्ड सुनापेंगे । इतना फह वह श्रॉरत श्रौर चच्चे चले गये । उन बच्चो में दो लड़के घोर एक लंउकी थी । प्रेमनाय श्रौर उसके सायी विस्मप से उस श्रोरत को जाते देखते रहे । जब वे दूसरे लान में चले गये तो प्रेमनाथ ने मिठाई ्रौर फल सब में वाद दिये । पदचात प्रामोफोन के वजने की म्ावाजू माई तो सच वहाँ जा पहुंचे । रात जव प्रेमनाय ने माँ फो यह कहानी सुनाई तो वहू रोने लगी थी 1 प्रेमनाथ ने माँ के गले में बाहे डालकर पूछा, “माँ तुम रोती क्यो हो, हुमफो मिठाई नहीं सानी चाहिये थो न ?” माँ ने भ्रांतें पोदकर फहा, “यह मेने नहीं कहा, प्रेम ।”” “तो फिर तुम रोई क्यो हो ?” माँ ने बात वदल कर फहा, “ग्रय सो जाय । बहुत चकफ गये होगें ॥ देखो, रविवार को वड़ें लोग मकचरे में संर फरने ध्राते हैं तुमको उपर येलने नहीं जाना चाहिये ।”' इसके उपरान्त मंट्क फी परीक्षा में पास होने की हिदना यी । पढ़ सन १९६१५ यथा । प्‌ प्रेमनाय को स्कूल में भरती कराते समय उत्तकी मां को इस सब ये का ज्ञान नहीं वा; जो हुंप्रा । इस पर भो उसने य्पना पेट काटफर, पडो- सियो के कपड़े सीकर भर दिन-रात मेद्नत से सरवूसो के यो्मों से गिरियाँ निकाल कर, प्रेमनाय को पढ़ानें का प्रवन्प छिया या । प्रेमनाप इस बात को भलो-माति समन्दने लगा या । इन्दा उसकी बहिन भव वारह वर्ष को हो गई थो । यह रसूत नहीं जा सकी पा । मां से हिन्दी पड़ वहू रामापटा पढ़ने लगो थी । मेसनाय से अप्रेजी पड़े उसको किताबें पड़ने पोग्य हो गई यो भोर फिर घर का कास-




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