बेनीपुरी ग्रंथावली खंड २ | Benipuri Granthawali Khanda II
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
540
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रवचन १३
तुमको मारा है । ध्च्छा श्रव खाग्ो । साकर तुम अब उघर स्ाना, हम
तुमको प्रमोफोन रिकार्ड सुनापेंगे ।
इतना फह वह श्रॉरत श्रौर चच्चे चले गये । उन बच्चो में दो लड़के
घोर एक लंउकी थी । प्रेमनाय श्रौर उसके सायी विस्मप से उस श्रोरत
को जाते देखते रहे । जब वे दूसरे लान में चले गये तो प्रेमनाथ ने मिठाई
्रौर फल सब में वाद दिये । पदचात प्रामोफोन के वजने की म्ावाजू माई
तो सच वहाँ जा पहुंचे ।
रात जव प्रेमनाय ने माँ फो यह कहानी सुनाई तो वहू रोने लगी
थी 1 प्रेमनाथ ने माँ के गले में बाहे डालकर पूछा, “माँ तुम रोती क्यो
हो, हुमफो मिठाई नहीं सानी चाहिये थो न ?”
माँ ने भ्रांतें पोदकर फहा, “यह मेने नहीं कहा, प्रेम ।””
“तो फिर तुम रोई क्यो हो ?”
माँ ने बात वदल कर फहा, “ग्रय सो जाय । बहुत चकफ गये होगें ॥
देखो, रविवार को वड़ें लोग मकचरे में संर फरने ध्राते हैं तुमको उपर
येलने नहीं जाना चाहिये ।”'
इसके उपरान्त मंट्क फी परीक्षा में पास होने की हिदना यी । पढ़
सन १९६१५ यथा ।
प्
प्रेमनाय को स्कूल में भरती कराते समय उत्तकी मां को इस सब ये
का ज्ञान नहीं वा; जो हुंप्रा । इस पर भो उसने य्पना पेट काटफर, पडो-
सियो के कपड़े सीकर भर दिन-रात मेद्नत से सरवूसो के यो्मों से
गिरियाँ निकाल कर, प्रेमनाय को पढ़ानें का प्रवन्प छिया या । प्रेमनाप
इस बात को भलो-माति समन्दने लगा या ।
इन्दा उसकी बहिन भव वारह वर्ष को हो गई थो । यह रसूत नहीं
जा सकी पा । मां से हिन्दी पड़ वहू रामापटा पढ़ने लगो थी । मेसनाय से
अप्रेजी पड़े उसको किताबें पड़ने पोग्य हो गई यो भोर फिर घर का कास-
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