कला क्या है | Kala Kya Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) जिसमें “ टाल्स्टाय ने इसका विवेचन किया है न कि जिस रूप में आ्रालोचक ने इसकी व्याख्या की है । उन्नीसवी शती के श्रत में पुस्तक लिखते समय टाल्स्टाय कला की घारा समझने के परे कितनी दूर तक गए इसका सकेत इस तथ्य से प्राप्त होता है, कि इसके प्रथम समालोचक उनकी विवेचना समझने में एकदम भ्रसमर्थ रहे, और झब भी इतने वर्षों वाद हमारे कुछ योग्य समीक्षक--एक उदाहरण श्रभी ही दिया जा चुका है--यह समझने में समर्थ हे कि टाल्स्टाय ने जो कुछ स्पप्ट आर संबलता से कहा है वह उसी में विश्वास करते थे, श्रौर श्रव भी जो टाल्स्टाय के मत्ये युक्तिह्दीन सिद्धात मढते है, मानो जव टाल्स्टाय ने श्रपने सुपरिचित विपय 'पर वक्तव्य दिये, उस समय वे अ्रद्ध॑नपु सक हो गए थे और उनकी बकवास का संदोधन करने की श्रालोचको में पूर्ण योग्यता है । यह रुख उस खसी कहावत की याद दिला देता है जिसमें 'बीमार लोग स्वस्थ मनुष्यो को विस्तर पर पड़े रहने की सलाह देते हे + ज्यो-ज्यो चष वीतते जाते हैं, टाल्स्टाय का यह ग्रंथ झधिकाधिक समझा जा रहा है, समीक्षको द्वारा उत्पन्न किया गया भ्रम-जाल तिरोहित होता जाता है, सम्बन्धित तथ्य एव समृदाय श्रेष्ठतर श्रनुपात में देखे जा रहे है श्रौर मानव जीवन में कला द्वारा श्रमिनीत भूमिका को समझने का मूल्य अ्धघिकाधिक स्वीकृत होता जा रहा है । कला श्र जीवन की झंतरक्रिया का प्रदन निस्सन्देह संदिलष्ट है श्नौर जब 'टाल्स्टाय के से सुदुढ विर्वासोवाला व्यक्ति कुछ भावनात्ो के प्रति श्रपना राग- विराग प्रकट करता है--उदाहरणर्थ शांतिवाद या सँन्यवाद के श्रनुकूल सावनाओ के प्रति--तव झवश्यमेव वे व्यक्ति उसका विरोध करेंगे, जिनकी भावनाएँ उसकी भावनाशओ के' विपरीत हे; श्रौर इसलिए, यदि कला का मूर्वोल्लिखित सिद्धान्त सम्यक रूपेण हृदयगम न किया गया, तो लोग समसेंगे कि उनका मतभेद कला के विषय में है जब कि वस्तुतः यह मतभेद श्राचार- चआास्त्र के विषय में है । यह निद्चित है कि अपने मत में गहरी निष्ठा रखनेवाला एक रोमन -कैथलिक, एक इवेजेलिकल, एक एकात्मक शासनवादी, एक नास्तिक, शझ्रथवा काम, मद्य, रणचण्डी, कुवेर, हाथी श्र नर-वलि के झमिलापी देवता का पूजक रणक ही सी भावनाओं का समन नहीं कर सकता, परन्तु जो भी भावनाएँ




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