भारतीय समाजशास्त्र - मूलाधार | Bhartiya Samajshastra - Mooladhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सारतीय समाजशास्
(१) विषय-प्रवेशें
परिमापा
समाजशाखं के विंपय में कई भ्रम फैलें हुए हैं; और येहूं
श्रम केवल .साधारण जनों में ही नहीं अंपितु कई : कालेज
अध्यापकों में भी मिलेंगे । छुछं लीगों के विंचारं में तो इतिहांसं;
शजनीति; अथैशाख्रं असरंति सामाजिक शास्त्रों में से प्रत्येक को
ही समाजशास्त्र कहा जा सकता है; कुछ दूसरे लोग ईन सभी
के समूंह को समाजशाख्र माने लेते हैं। परन्तु, इंन॑ दो में सें-
एक भी विचार ठीक नहीं; वास्तव सें अथेशास्त्र आदि की मांतिं
ही समाजशाख्र. भी एक स्वतंत्र सामाजिक शास्त्र है और
यद्यपि अन्य प्राकृतिक अथवा सामाजिक शाख्र उसके अध्ययन
में सहायक होते हैं, फिर भी वे सामूहिक रूप में या प्रथक
प्रथक उसका स्थान नहीं ले.खकते ।
यथा सें, उक्त अंशास््रीय मतों का उत्तरदायित्व प्ारंस्मिक
समाजशाखि्यों की अशास्त्रीयता पर 'है। उन्होंने समाजशाख्र
की जो परिभापाएंँ .दी. हैं, उनमें - उसका स्वरूप पूर्णतया
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