संकेत सौरभ | Sanket saurabh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
782
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ष् 'साकेत'-सीरभ
नह
चल श्रयोध्या के लिए आज तू |
वाणी की देवी को सबधा श्रजुकूल पा कर कवि अनुरोध भरे स्वर
सं कहता हे-
“तू झपना सच साज सजाकर झयोध्या चलने के लिए तैयार हो जा । मां,
सेरी यह इच्छा पूर्ण करके मुझे कृतकृत्य कर दे |”
सरस्वती '्रौर कवि, माँ श्र पुत्र, के बीच व कोई श्रन्तर शेष नहीं । झय
पुन्न 'अपने हृदय की बात स्पष्टत८ कह देता है. “माँ, अपने सब साज सजा ले
ध्औीर मेरे साथ श्वयोध्या चलकर मुझे कृतार्थ कर दे” (यहाँ 'साज” द्वारा काम्य के
विभिन्न उपकरणों --गुण, रस; 'पलकार श्रादि की श्योर सकेत है । 'साकेत” में इन
सब को यथोचित स्थान प्राप्त है ।) 'साकेत' की रचना गुप्त जी के जीवन की
महदानतस साध वन गयी थी । उन्होंने स्वयं कहा है , “में चाहता यथा कि मेरे
साहित्यिक जीवन के साथ ही 'साकेत” की समाप्ति हो” श्रौर “इच्छा थी कि. सबके
धन्त में श्रपने सहदय पाठकों श्रौर साहिस्यिक वन्घुश्रों के सम्मुख 'साकेत' उपस्थित
करके श्पनी 'छष्टता श्यौर चपलताथों के लिए क्षमा-याचना-पूवंक बिदा लुगा”--
(साकेत, निवेदन) । ध्यत यहाँ 'कृतकृत्य' शब्द का प्रयोग श्त्यन्त उप युक्त हे।
'कृतदटत्य' का 'ध्रथ हैं 'सफल मनोरथ' (जिसका काम पूरा हो सुका हो)
है. गया
स्वर्ग से थी '्ाज 'अवतार है |
(मा सरस्वती को साथ लेकर कवि साफ़ेत नगरी में पहुचता दै 1)
'माज प्रथ्वी का महत्व तो स्वर्ग से भी श्रघिक है । इसका सौभाग्य-सूर्य
उद्यगिरि पर घढ गया है (श्पनी चरम सीमा पर है) क्योंकि त्रिगुणातीत
(सतोगुण, रजोगुण 'छीर तमोगुण से परे) निराकार ब्रह्म प्रथ्वी पर सगुण्ण श्रीर
साकार हो गया है । सारे ससार के स्वामी ने झाज प्रश्वी पर झवतार ले
लिया है ।
उदयगिरि पुराणानुसार पृवंदिशा में स्थित एफ पर्वत जहाँ से सूर्य
निकलता हैं ।
ले लिया श्रख़िलेश ने श्रवतार है... राम मनु्य दे या देवता, इस सम्पन्ध
में राम-क्था के विभिन्न गायको का दृष्टिकोण भिन्न रहो है । महपि वाल्मीफि के
राम देवता न होकर महापुस्प ही हे । श्रादि-काव्य के श्वारम्भ में मददर्पि वादमसीकि
दुवधषि नारद से प्रश्न करते है --
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