संस्कार मार्ग दर्शन भाग - २ | Sanskar Marg Darshan Bhag -2

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Sanskar Marg Darshan Bhag -2 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सस्कार मार्गदर्शक 17 (5) (७) मिलता है सच्चा सुख मिलता है सच्चा सुख केवल, भगवान तुम्हारे चरणों मे । यह विनती है पल-पल, क्षण क्षण, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों मे ॥1 ॥! चाहे वैरी सब ससार बने, चाहे मौत गले का हार बने । चाहे जीवन मुझ पर भार बने, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों मे ॥2 ॥ चाहे कारों पे मुझे चलना हो, चाहे अग्नि मे मुझे जलना हो । चाहे छोड के देश निकलना हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ॥3 ॥ चाहे सकट ने मुझे घेरा हो, चाहे चारो ओर अधेरा हो । पर मन ना डगमग मेरा हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ॥4 ॥ जिह्ला पर तेरा नाम रहे, तेरी याद सुबह और शाम रहे । बस काम ये आठों याम रहे, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों मे ॥5 ॥ (6) उठ भोर भई उठ भोर भई टुक जाग सही, भज वीर प्रभु-भज वीर प्रभु । अब नीद अविद्या त्याग सही, भज वीर प्रभु-भज वीर प्रभु ॥ 1 ॥ जग जाग उठा तू सोता है, अनमोल समय क्यू खोता है । तू काहे प्रमादी होता है, भज वीर प्रभु-भज वीर प्रभु ॥ 2 ॥ यह समय नही है सोने का, है वक्‍त पाप मल धोने का । अरु सावधान चित्त होने का, भज वीर प्रभु-भज वीर प्रभु ॥ 3 ॥ तू कौन कहा से आया है, अब गमन कहा मन भाया है । टुक सोच यह अवसर पाया है, भजवीर प्रभु-भजवीर प्रभु ॥4 ॥ रे चेतन चतुर हिसाब लगा, क्या खाया खरचा लाभ हुवा । निज ज्ञान जगा तू सभाल हिया, भजवीर प्रभु-भजवीर प्रभु ॥5 ॥ गति चार चौरासी लाख रुला, यह कठिन कठिन शिव राह मिला | अब भूल कुमार्ग विषे मत जा, भजवीर प्रभु-भजवीर प्रभु ॥6 ॥




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