संस्कार मार्ग दर्शन भाग - २ | Sanskar Marg Darshan Bhag -2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सस्कार मार्गदर्शक 17
(5) (७) मिलता है सच्चा सुख
मिलता है सच्चा सुख केवल, भगवान तुम्हारे चरणों मे ।
यह विनती है पल-पल, क्षण क्षण, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों मे ॥1 ॥!
चाहे वैरी सब ससार बने, चाहे मौत गले का हार बने ।
चाहे जीवन मुझ पर भार बने, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों मे ॥2 ॥
चाहे कारों पे मुझे चलना हो, चाहे अग्नि मे मुझे जलना हो ।
चाहे छोड के देश निकलना हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ॥3 ॥
चाहे सकट ने मुझे घेरा हो, चाहे चारो ओर अधेरा हो ।
पर मन ना डगमग मेरा हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ॥4 ॥
जिह्ला पर तेरा नाम रहे, तेरी याद सुबह और शाम रहे ।
बस काम ये आठों याम रहे, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों मे ॥5 ॥
(6) उठ भोर भई
उठ भोर भई टुक जाग सही, भज वीर प्रभु-भज वीर प्रभु ।
अब नीद अविद्या त्याग सही, भज वीर प्रभु-भज वीर प्रभु ॥ 1 ॥
जग जाग उठा तू सोता है, अनमोल समय क्यू खोता है ।
तू काहे प्रमादी होता है, भज वीर प्रभु-भज वीर प्रभु ॥ 2 ॥
यह समय नही है सोने का, है वक्त पाप मल धोने का ।
अरु सावधान चित्त होने का, भज वीर प्रभु-भज वीर प्रभु ॥ 3 ॥
तू कौन कहा से आया है, अब गमन कहा मन भाया है ।
टुक सोच यह अवसर पाया है, भजवीर प्रभु-भजवीर प्रभु ॥4 ॥
रे चेतन चतुर हिसाब लगा, क्या खाया खरचा लाभ हुवा ।
निज ज्ञान जगा तू सभाल हिया, भजवीर प्रभु-भजवीर प्रभु ॥5 ॥
गति चार चौरासी लाख रुला, यह कठिन कठिन शिव राह मिला |
अब भूल कुमार्ग विषे मत जा, भजवीर प्रभु-भजवीर प्रभु ॥6 ॥
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