बुद्ध हृदय | Buddh Hridaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रघुवीरशरण मिश्र - Raghuveer Sharan Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पु
बी कोई योजना न बन सकी । सोचा कि प्रसिद्ध प्रसिद्ध आचार्यो के
पास जाकर सत्य प्राप्त करूगा पर वहा कुछ न पाया जो कुछ पाया
बह नि सार था । आलारकालाम, उददक रामपुत्र वडे वडे आचार्य है
पर योग के नापर कछ व्यायाम सिखाने के सिवाय उनके पास कुछ
था | जगत को इस व्यायाम से क्या लाभ * उनने मुझे आचार्य
बनने को कहा था पर सत्य को पाये बिना आचाय बनने से क्या
ठामदसकी अपेक्षा राजा ही कया बुरा था ।कभी कभी चिन्ता होती
है कि क्या मेरा जीवन व्यम ही जायगा । मैं कितनी तपस्थाएँ कर
चुका ह, रूक्ष स रूक्ष आहार ग्रहण कर चुका हू, महीनों निराद्ार
रह चुका हू, मुर्दे के समान स्थिर पड़ा रहा हू पर सत्य नहा मिला |
ल्किन आश्रय तो यह है कि उसी समय दुनिया ने मुझे महान
समझा | पोंच भिश्ु मुझे महाज्ञानी समझकर वर्षों मेरी झाड़वदारी
करते रहे दनिया मुझ पूजने को आती रही जब के मैं दनिया
वो बछ नहीं दता था । दुनिया को यह एक वीमारी € कि. यह
निवम्म लोगों को पजती है । जो इसका पुचल से दमन करता ह
दिया परवोझ डाठता है. वही दुनिया का सम्नादू है; सन्त है,
योगी है । उन भिश्नओंकों देखे न, जवतक मैं निकम्मा रहकर कष्ट
महन करता रहा, सबके सब दासदासी की तरह मेरी मेरा करत
रेत, मैने उन्ह ढुछ नहीं दिग पर सन्तुषप्ट थे। और आन जब
प्प्प का दहदड छोट कार उन्हे डा देना चाहा समझाना चाहा
नद से सब भाग गये । यद्यपि मैने अभी सपय नहीं पाया है
र झनदा जसप्यों को पहिचान गया है और उनस हद गया है
'य सप सत्ययें दर्घन होने में देर न ठगी । पर मरी इस उन्नत
User Reviews
No Reviews | Add Yours...