सात इनकलाबी इतवार भाग १ | Seven Red Sundays Part-1

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Seven Red Sundays Part-1 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। सात इनकलीबी इतवार का ९ त्येक प्रश्न के उत्तर में केवल 'हाँ” कइता था । श्रौर बस यही थी नकी पार्लियामेन्ट ! सुक्ते इसमें कुछ तक नहीं मालूम हुई । जब श्रघि* ेशन समास हो गया तो मैंने फिर सभापति महोदय को लौबी में जा कड़ा और पूछा श्राया वह उसे काम की चीज़ समसते भी हैं । शिर को एक तरफ फेरकर, झुजाओं को पसार कर श्रापने इरशाद फरमाया-- श्रच्छा--श्रच्छा !” ज़ाहिर ही वद्द खुद इसके बारे में बहुत इृढ श्औौर मुत्मईन नहीं थे । यह सब व्यापार इतनी श्रधघिक देर तक नहीं होता रहा था कि मैं [री तरद ऊच उठता, श्रौर मेरे विचारों में कुछ उलट-पुलट भी नहीं दत्ा था क्योंकि जब मैं बाहर श्राया तो प्रजातंत्र ही का हिमायती था । गेशनी, सजावट तथा श्रसाधारण वातावरण से किंचित्‌ मात्र चकरा नाने के कारण मैं उन लोगों के वक्तव्यों को पूरी तरह समझ नहीं सका पा | श्रतः श्वेतकेशवाले सजन से एक प्रजातंत्रवादी की मर्यादा के प्रनुकूल ही मैंने कहा कि,इन पादरियों को तो इमें स्वाद्ा करना ही पडेगा। ने इनको जब ऊपस्वाली गैलरी में देखा तो सेरे खून ने ऐसा जोश गरा-मेरे मन में श्याया कि इनमें से कम से कम एक को तो जिन्दा ही वबा जाऊँ ! समापति बिना उत्तर दिये ही वहाँ) से खिसक चले । केन्तु उनके प्रवेशद्वार की सीढियो तक पहुँचते न पहुँचते मैंने कपट फर उनकी भुजा पकड़ ली । श्रब और चित्र लिए, जा रहे थे । दैनिकों के पढले सफे पर श्रापने श्रवश्य मेरा चित्र देखा होगा । इसके आाद जब वह अपनी कार में बैठने लगे तो मजबूरन सकते उनका साथ ऊोडना पडा । पार्लियामेंट णदद के सामने सड़क के दोनों शोर पैदल सिपाही पईनात थे जैसा कि मेले-तमाशों श्रौर मद्दोत्सवो के दिन इुश्रा करता है । हन्दीं में जुद्नाकिन भी नयी वर्दी पहने, नुपनवाप, घोंघे की तरह पु बन्द किये हुए ड्यूटी पर खड़ा हुआ था ! वह १६३० में युद्ध-घारा




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