नंद काव्यालोचन | Nand Kavylochan

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Nand Kavylochan by पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' - Pt. Ramshankar Shukl ' Rasal '

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ होना उदाहरण के द्वारा ट्खिलाया गया हैं। इसी समय चद्रोदय का सालकारिकिचियण हश्मा हैं, जिसमे मदन के फाग खेलने की उल्ेक्षा चरिताथ की गई ऐ । इस प्रकार इसके द्वारा अपिम रास-रस-क्रीडा की शचना दी गई है । इससे स्पष्ट है कि यहा प्रक्ति-वणशान को कवि साभि प्राय रखना चाहता है । इसी के साथ चद्र-किस्णां के बुभ्न-कजाटि से भलकने की चारुता से टिखलायी हई उम्प्रेश्ना के ब्याज से वहाँ आकर उनके दृरि-रास के देखने की इच्छा थी प्रगट की गई है । आगे राम-वर्णन हैं, जिसमे मकृति के विविध सुन्दर पठाथो को उपमानो के रूपों में लिया गया हैं । यह तो सामान्य कवि-परंपरा झ्रोर काव्य-पद्धति के ही रूप में दै ।? रास-लीला के लिये दरि द्रागे यमुना-तीर पर श्राते हूं, इस स्थल ' पर फिर तनिक प्रकृति का उल्लेख किया गया है 1; येंहों शीतल, + सुर भित समीर, पराग-रज का प्रसार, तथा मधुप-गु जार दिखाते हुए; मालती, मंदार, लवंगाटिं कतिपय पेड़ों श्ौर पौधों की सुरभि- प्रसारण-प्रगति का उल्लेख केवल उद्दीपन के रूप में किया गया है, ऐसे स्थल पर श्री हरि घालुका के ऊपर बैठ गये, यहाँ गोपियों ने अपने वस्र :. नहीं बिछाये, किंठ श्रागे हरि के लुप्त होकर फिर प्रगट होने पर बिछाये हैं; जिसका उल्लेख किया जा चुका है। 1 - इस सब रति-भावोत्पादक परिस्थिति के साथ गोपियों के होते हुए. ',. भी भी हरि ने श्रपने प्रसाव से मदन को पराजित कर दिया है, स्वयमेव उससे प्रभावित नहीं हुए ! यह हरि की काम पर विजय है । मदन विफल !. ; हैकर गिरे पढ़ा, तबरति निज सुखोदक से उसे सचेत कर ले भागी । इस |, मसंग से कवि ने ध्वनिंत किया है कि यह सारा प्रसंग का्म-विजय का प्रसंग,है--इसमें लौंकिक वासना का श्रारोप करना समीचीन नहीं | व, न उलट लमन्वस्ककमजन बी र दे _ ,.. * एतदथ देखिये-हमारा “साहित्य और प्रकति”- नामक हि गय। पे १२, १३, रद, ८, रेट, र४ । भ डा द्‌ त्




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