गंगा जमनी | Ganga Jamni

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : गंगा जमनी  - Ganga Jamni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द. सेमी ह नसेन-पटटटदटरस विन [ ७ “फरो धोफसे मुदन्यय मगर एस पात सुनछो | किसी मौर फामके फिर मे रदोंगे दिल लगाफर 1 कोर सगानार पानीयों पारस परधर ऐग्यी सर चोजपर कि ० बन कक न सो निास यन ही घना है। दर एस नी श्यनपर प्यार सौर सुदफारसें यममें लादो साले रि। फिर सदनौफा प्रेस-- जे बा ् ० कि का जद शा मरे दिददर याद शया वो फाननरी साश्जुपकफी यात है न नी मम ंग ही अनोगो -र नागा प्रकारफें हैं। कोई टीक पद महीं सफमा दि याद फिंस श्गास सय्द्स टिलपर हमला फरता दे । फनी डृष्टि मिलने ही दोनों ओोरसे इसके पुष्प- घाण चल जाते है। फ्मी यद मुद्दरदोतक अपने शिफारफों खुमानछुमाफर घीरे-घीरें भपने फन्टेंमें ला फंसाता है। फमी याद चरसों चूपनाप ताफ लगाये बैठा रदता हैं ओर मीफा पाति ही फिसी यास यात था थदापर एप्हाएकफ भपने असामीफों पड़फ लेता है। फिंर चंद वेचारा इस रोगमें पड़फर सोचने लगता दै कि भरे | कल जिससे मैं सीघें सुँद चाततफ नद्दीं फरता था माज पकाएक मुझे यया दो गया कि उसे मैं तन मन घनसे पूजने लगा । जच मैं इलादावाद इन्टू न्खका इस्तदान देने गया था मैं नह शू ६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now