गंगा जमनी | Ganga Jamni

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Ganga Jamni by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द. सेमी ह नसेन-पटटटदटरस विन [ ७ “फरो धोफसे मुदन्यय मगर एस पात सुनछो | किसी मौर फामके फिर मे रदोंगे दिल लगाफर 1 कोर सगानार पानीयों पारस परधर ऐग्यी सर चोजपर कि ० बन कक न सो निास यन ही घना है। दर एस नी श्यनपर प्यार सौर सुदफारसें यममें लादो साले रि। फिर सदनौफा प्रेस-- जे बा ् ० कि का जद शा मरे दिददर याद शया वो फाननरी साश्जुपकफी यात है न नी मम ंग ही अनोगो -र नागा प्रकारफें हैं। कोई टीक पद महीं सफमा दि याद फिंस श्गास सय्द्स टिलपर हमला फरता दे । फनी डृष्टि मिलने ही दोनों ओोरसे इसके पुष्प- घाण चल जाते है। फ्मी यद मुद्दरदोतक अपने शिफारफों खुमानछुमाफर घीरे-घीरें भपने फन्टेंमें ला फंसाता है। फमी याद चरसों चूपनाप ताफ लगाये बैठा रदता हैं ओर मीफा पाति ही फिसी यास यात था थदापर एप्हाएकफ भपने असामीफों पड़फ लेता है। फिंर चंद वेचारा इस रोगमें पड़फर सोचने लगता दै कि भरे | कल जिससे मैं सीघें सुँद चाततफ नद्दीं फरता था माज पकाएक मुझे यया दो गया कि उसे मैं तन मन घनसे पूजने लगा । जच मैं इलादावाद इन्टू न्खका इस्तदान देने गया था मैं नह शू ६




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