भगवच्चर्चा भाग - 1 | Bhagavaccharcha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
295
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भगवघ्चचो भाग १ १२
एक ही गतिसे प्रवाहित होने लगती हैं । एक ऐसा नशा शरीर-
मनपर छा जाता है कि फ़िर जीवनभर वह कभी उतरता ही नहीं,
जब कभी उतरता है तो अहम? को ढेकर ही उतरता है । ऐसे ही
नशेमें चूर भाग्यवती त्रज-बाठाओने कहा था--
दूध दुद्लो सीरो परश्यो तातो न जमायो वीर,
जामन दयो सो घरों धरवयोई खटायगो ।
आन हाथ आन पाय सबहीके तबहीते,
जवहीते “रसखानि' ताननि सुनायगो ॥
ज्यों ही नर त्याँ ही नारी तेसी ये तरुनि बारी,
कहिये कहा री सब ब्रज विललायगो।
जानिये आली ! यह छोहरा जसोमतिको,
वाखुरी वजायगों कि विप वगरायगों ॥
--रसखानि
जिस शुभ क्षणों श्रजमण्डछो तुम्हारी बंगी बजी, उस क्षण
त्रजके प्रेमी जीवॉकी कया दा हुई थी, इस बातका मधुरातिमघुर
अनुभव उन्हीं सं।माग्यशाठी भक्तोंको होता है । हमठोग तो उसकी
कत्पना भी नहीं कर सकते । पर सुनते हैं कि तुम्हारी उस वशी-
ध्वनिने जटको चैतन्य और चेतन्यको जद बना दिया था | सारे
कार्मियोंकों विरुद्ध प्रेमी बना दिया था । तुम्हारे मुरी-निनाद को
सुनकर सांसाएक भोगोंकी सबकी सारी कामनाएँ क्षणभरमें नष्ट हो
गयी थीं और संसारके प्रिय-से-प्रिय पदार्थोको दृणवत्ु त्याग कर सबका
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