भगवच्चर्चा भाग - 1 | Bhagavaccharcha

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Bhagavaccharcha  by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगवघ्चचो भाग १ १२ एक ही गतिसे प्रवाहित होने लगती हैं । एक ऐसा नशा शरीर- मनपर छा जाता है कि फ़िर जीवनभर वह कभी उतरता ही नहीं, जब कभी उतरता है तो अहम? को ढेकर ही उतरता है । ऐसे ही नशेमें चूर भाग्यवती त्रज-बाठाओने कहा था-- दूध दुद्लो सीरो परश्यो तातो न जमायो वीर, जामन दयो सो घरों धरवयोई खटायगो । आन हाथ आन पाय सबहीके तबहीते, जवहीते “रसखानि' ताननि सुनायगो ॥ ज्यों ही नर त्याँ ही नारी तेसी ये तरुनि बारी, कहिये कहा री सब ब्रज विललायगो। जानिये आली ! यह छोहरा जसोमतिको, वाखुरी वजायगों कि विप वगरायगों ॥ --रसखानि जिस शुभ क्षणों श्रजमण्डछो तुम्हारी बंगी बजी, उस क्षण त्रजके प्रेमी जीवॉकी कया दा हुई थी, इस बातका मधुरातिमघुर अनुभव उन्हीं सं।माग्यशाठी भक्तोंको होता है । हमठोग तो उसकी कत्पना भी नहीं कर सकते । पर सुनते हैं कि तुम्हारी उस वशी- ध्वनिने जटको चैतन्य और चेतन्यको जद बना दिया था | सारे कार्मियोंकों विरुद्ध प्रेमी बना दिया था । तुम्हारे मुरी-निनाद को सुनकर सांसाएक भोगोंकी सबकी सारी कामनाएँ क्षणभरमें नष्ट हो गयी थीं और संसारके प्रिय-से-प्रिय पदार्थोको दृणवत्ु त्याग कर सबका




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