जैन कहानियाँ भाग - 16 | Jain Kahaniyan Bhag - 16
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महेन्द्रकुमार जी प्रथम - Mahendrakumar Ji Pratham
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ष् जेन कहानिया
यदि तुम्हें प्रतीति न होती हो, तो मैं भद् वृषभ की
तरह शपथ पुवंक भी तुम्हें विस्वास दिला सकता
हूँ
कुंचिक सेठ ने पूछा--“'भगवन् ! यह भद्र वृषभ
कौन था श्रौर उसने किस प्रकार झापथ ग्रहण की
थी?”
मुनिवर मुनिपति ने कहा--“चम्पा नगरी में
अजितसेन राजा था । वहां एक मठाधीश रहता था।
उसके पास दो गोकुल थे। एक बार एक गौ ने एक
बछड़े को जन्म दिया । वह ज्यों ही युवा हुमा, मदोन्मत्त
हो गया । स्वेच्छया नगर में घूमने लगा । जनता में
उसकी प्रियता थी । जनता उसे सू्ंसंढ़ के नाम से
पुकारती थी ।
चम्पा में जिनदास नामक एक श्रावक भी रहता
था । वह दृढ़ सम्यक्त्वी, ध्म-परायण तथा राज-मान्य
था । तीनों समय शुद्ध घामिक क्रियायें करता था। पते
तिथियों में उसने कभी भी पौपध नहीं छोड़ा । राशि
में चहुधा शून्य घरों में जाकर एकान्त में कायोत्सर्ग
करता था 1
घनश्री जिनदास की पत्नी थी । वह जिनदास से
विपरीत प्रकृति की थी । वह पापात्मा तथा कुलटा थी ।
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