जैन कहानियाँ भाग - 16 | Jain Kahaniyan Bhag - 16

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Jain Kahaniyan Bhag - 16 by महेन्द्रकुमार जी प्रथम - Mahendrakumar Ji Pratham

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ष् जेन कहानिया यदि तुम्हें प्रतीति न होती हो, तो मैं भद् वृषभ की तरह शपथ पुवंक भी तुम्हें विस्वास दिला सकता हूँ कुंचिक सेठ ने पूछा--“'भगवन्‌ ! यह भद्र वृषभ कौन था श्रौर उसने किस प्रकार झापथ ग्रहण की थी?” मुनिवर मुनिपति ने कहा--“चम्पा नगरी में अजितसेन राजा था । वहां एक मठाधीश रहता था। उसके पास दो गोकुल थे। एक बार एक गौ ने एक बछड़े को जन्म दिया । वह ज्यों ही युवा हुमा, मदोन्मत्त हो गया । स्वेच्छया नगर में घूमने लगा । जनता में उसकी प्रियता थी । जनता उसे सू्ंसंढ़ के नाम से पुकारती थी । चम्पा में जिनदास नामक एक श्रावक भी रहता था । वह दृढ़ सम्यक्त्वी, ध्म-परायण तथा राज-मान्य था । तीनों समय शुद्ध घामिक क्रियायें करता था। पते तिथियों में उसने कभी भी पौपध नहीं छोड़ा । राशि में चहुधा शून्य घरों में जाकर एकान्त में कायोत्सर्ग करता था 1 घनश्री जिनदास की पत्नी थी । वह जिनदास से विपरीत प्रकृति की थी । वह पापात्मा तथा कुलटा थी ।




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