श्रीमद धर्मदासजी महाराज और उनकी मालव-शिष्य-परम्पराएँ | Shreemad Dharmdasji Maharaj Aur Unki Maalaw-Shishya-Paramparayein

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : श्रीमद धर्मदासजी महाराज और उनकी मालव-शिष्य-परम्पराएँ - Shreemad Dharmdasji Maharaj Aur Unki Maalaw-Shishya-Paramparayein

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about धर्मदास जैन - Dharmdas Jain

Add Infomation AboutDharmdas Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
महाराज के पहुशिष्य पूज्यपाद घोसादू घासीलालजी सहाराज का नाम छूट गया है । इन मुनिवरय ने जैन आगमों की सस्कृत, हिन्दी तथा गुजराती भाषाओं में विवेचनार्मक टीकाएँ लिख कर तथा उन्हें प्रकानित करवा कर सघ-सेवा एवं जिनवाणी-तेवा का अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं प्रगसतीय काये किया है । अभी लगभग दो वर्ष पूर्व अहमठावाद (गुजरात) में उनका स्वर्गवास हो गया है, जहा वे कुछ वर्षों हे स्थिरवास रहू कर आगमोद्धार के कार्य में सलग्न थे । आशा है आगामी सस्करण में इस कमी की पति कर ली जावेगी | परिनिप्ट क्रमांक ९-'वेरावलि' प्राइत भाषा में रचित लेखक श्री उमेगमुनिजी 'अणु' की गाथारूप कृति है, जो साया तथा भाव दोनों हप्टियो से पठनीय, मननीय एवं अनुमोदनीय है | प्रस्तुत पुस्तक में पूज्य श्री घर्मदासजी महाराज की सम्प्रदाय के सन्तों द्वारा प्रदत्त प्रेरणा से सघहिंत में स्थापित महत्त्वपूर्ण सस्थानों का कुछ भी उल्लेख नही है । रतलाम तथा खाचरौद मे स्थापित श्री बर्मंदातत जेन मित्र मण्डलो, श्री पूज्य सन्द साहित्य समिति थादला एवं श्री कृष्ण जेन महिला कला केन्द्र रतलाम भादि का सलिप् विवरण पुस्तक के परिनिष्ट भाग में दे दिया जाता, तो उत्तम होता 1 यहाँ एक तथ्य का उल्नेख कर देना अत्यावग्यक प्रतीत होता है । पूज्य श्री घमंदासजी महाराज को सम्प्रदाय के सन्त विक्रम संवत्‌ २००९ में सादड़ी (मारवाड़। में अनेक सम्प्रदायो के विलीनीक रण द्वारा स्यापित “वर्षमान श्रमण सघ' मे सम्मिलित हो गये हूं बौर अभी भी उसी में मम्मिछितत हैँ तथा अपने आपको उक्त श्रमण सघ के वर्तमान आचार्य श्रीमादु पूज्य थी आनन्दकऋषिजी महाराज के आाजानुयायी मानते है किन्तु धमण सघ में से कुछ सम्प्रदायो एव कतिपय मुनिसमुदायों के अकग हो जाने ने मथ का संगठन शिथिक सा हो गया हैं, जिसमें सब के हिनेद्छु मुनियों तथा श्रावकों का चिन्तितत होता स्वामाविक है । थाओा की जानी चाहिये कि सब के अग्रणी मुनिवर दस ओर ध्यान देंगे । पित्पार्ग ७ मसल पुस्तक की भाषा अत्यन्त सरल एव सुवोध है । पा हर गे रांध्दं जन हा और घव्दावलियो का प्रयोग लेखक सुनिभी ने नहीं गया है, (८) कि न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now