महारथी लाला लाजपतराय | Maharathi Lala Lajpatray
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
99
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वम्भरप्रसाद शर्मा - Vishvambhar Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्दे
-समाजमें जो सामाजिक जागृति दृष्टिगेचर होती है उसका कारण लाठाजी
की सामाजिक क्रांति का ही झुम परिणाम है। धर्म के नाम पर हिन्दू
समाज में जो विनाशकी आप्रे घघक रही है ठाठाजी उसे सदेव शांत करने
के लिए प्रयत्न करते थे । नाशकारी घा्मिक विश्वासों के विरोधमें छालाजी
की सबसे पहले आवाज निकठती थी । शिक्षा क्षेत्रें छाठाजी को यदि देश
के नेताओंका विपुठ सहयोग मिछता तो वे देश के समक्ष शिक्षाका नर्वीन
आदर्श उपस्थित कर सकते थे । फिर भी स्वशक्ति और जनता के सहयोगा-
नुसार उन्होंने शिक्षण सुधारके ठिए जो कुछ किया वह चिर स्मरणीय
रहेगा । डी. ए. वी. काठिज की तनमनघन से सहायता करने के अति
फिक्ति आपने तिठक स्कूल आफ पाठिटिक्स जैसी उध्वकोदि की राष्ट्रीय
शिक्षण संस्था स्थापित की और उसे अपना ४० हजार का पुस्तकालय तथा
एक ठाखका मकान दान दे ढाला । यहीं नहीं वे शिक्षण सुधारके लिए भार-
तीय सरकार से सदैव लड़ते रहे । गत सिमला अधिवेशन में भारतीय न्यव-
स्थापिक सभा में इस विपयमें आपने एक प्रस्ताव भी रखा था जो स्वीकृत हुआ 1
स्वराज्यपार्टी वाठोंसे हिन्दू मुस्ठिम समस्या पर गहरा मतभेद हुएभी राष्ट्र
एित के ठिए वे सदेव उन के साथ ही न थे वरन पथ प्रदूशक का कार्ट
करते थे । मारतवर्पके जन्म तिंद्ध अधिकार का ठेका अपने हाथ में लेने
वाले अंग्रेजी कूटनीतिज्ञों द्वारा नियुक्त गोरे सायमन कमीशन का आऊ
सर्वश्र जो घोर बहिष्कार हो रहा है, छाठाजी उसके सूत्रघार थे । भारती
व्यवस्थापक समामें कमीशन के विरोध में आपर्हीने सबसे पूर्व प्रस्ताव /
उपस्थित किया था जो प्रचण्ड प्रजामत से पास हुआ । भारतयि व्यवस्था
पिका सभा के सदस्य होतें हुए छाठारजीने समय २ जो भाषण दिये
उनसे विदित होता है कि छाठाजी के हृदय मैं स्वदेश के छिए भाएँ
दु्द्था और वे एक क्षण में भारतकों स्वतंत्र देखना चाहते थे ।
पछला शिमला अधिवेशन लालाजा का आतम भारताय न्यवस्थापव
सदस्यता का जावन था । इस संशन आपकी ३४ चक्तताएं ह्ुड
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