श्री भागवत - दर्शन भागवती कथा भाग - 17 | Shri Bhagawat - Darshan Bhagavati Katha Bhag - 17
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
257
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्प भागवती कथा, खण्ड १७
एक चोर था । रात्रि में कहीं चोरी करने गया, घूमता
फिरता एक शिव मन्दिर में गया । सयोग की शांत कि उस दिन
अद्ोप था । शिवजी पर बहुत से फूल बतासे, लड्डू तथा फल
'छादि चढे हुए थे । बहुत से दीपक जल रहे थे । पूजा श्रादि
करके सब भक्त चले गये थे । सून सान स्थान था । चोर ने
पदचिले तो जाकर मेवा तथा फलों पर हाथ मारा, लड्डुओ को
उड़ाया 'और फिर चारों श्योर देखने लगा । चोरी के लिये श्वौर
तो कोई वस्तु उसे दियाई दी नहीं । भगवान् के पिडी की ऊपर
लोदे की साकेल मे एक बडा भारी घटा लटक रदा था । चोर ने
सोचा--'यदि यदद घणटा किसी प्रकार मिल जाय, तो यही १०
३० रुपये में विक सकता है ।”
1. घणटा ऊँचा था, वद्दों तक दाथ पहुँचता नहीं था । शिवती
की पिडी बडी '्रौर विशाल थी । उसने सोचा-“'इस पिडी पर
घढ़कर इसे उतार लें।”
ग
यद्द सोचकर वदद दोनों पैर शिवलिंग पर रखकर खड़ा
दो गया श्औौर उस घंटे को उतारने लगा । कितना भारी अपराध
चसने शिवजी का किया । किन्तु भगवान् 'झाशुवोप तो 'ौंघड़०
दानी दी ठदरे, पवा नहीं फिस काम से किस पर ये कब ढुर
ज्ञायेँ । उस चोर के कार्य से वे प्रसन्न दोने के स्थान में असन्न
दो गये और उससे वरदान मॉगने के लिये कहा ।
इस पर शीनकजी ने पूछा--'मद्दासंज घोर नें कौन सा
कार्य किया था । शिवजी उसकी क्सि सेवा से प्रसन्न हुए।
उससे उटदा उनके श्री ग पर पैर ८ रसकर घोर 'झपराघ
किया था 1” नल हू या
User Reviews
No Reviews | Add Yours...