श्री भागवत - दर्शन भागवती कथा भाग - 17 | Shri Bhagawat - Darshan Bhagavati Katha Bhag - 17

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Shri Bhagawat - Darshan Bhagavati Katha Bhag - 17  by श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी - Shree Prabhu Duttji Brhmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्प भागवती कथा, खण्ड १७ एक चोर था । रात्रि में कहीं चोरी करने गया, घूमता फिरता एक शिव मन्दिर में गया । सयोग की शांत कि उस दिन अद्ोप था । शिवजी पर बहुत से फूल बतासे, लड्डू तथा फल 'छादि चढे हुए थे । बहुत से दीपक जल रहे थे । पूजा श्रादि करके सब भक्त चले गये थे । सून सान स्थान था । चोर ने पदचिले तो जाकर मेवा तथा फलों पर हाथ मारा, लड्डुओ को उड़ाया 'और फिर चारों श्योर देखने लगा । चोरी के लिये श्वौर तो कोई वस्तु उसे दियाई दी नहीं । भगवान्‌ के पिडी की ऊपर लोदे की साकेल मे एक बडा भारी घटा लटक रदा था । चोर ने सोचा--'यदि यदद घणटा किसी प्रकार मिल जाय, तो यही १० ३० रुपये में विक सकता है ।” 1. घणटा ऊँचा था, वद्दों तक दाथ पहुँचता नहीं था । शिवती की पिडी बडी '्रौर विशाल थी । उसने सोचा-“'इस पिडी पर घढ़कर इसे उतार लें।” ग यद्द सोचकर वदद दोनों पैर शिवलिंग पर रखकर खड़ा दो गया श्औौर उस घंटे को उतारने लगा । कितना भारी अपराध चसने शिवजी का किया । किन्तु भगवान्‌ 'झाशुवोप तो 'ौंघड़० दानी दी ठदरे, पवा नहीं फिस काम से किस पर ये कब ढुर ज्ञायेँ । उस चोर के कार्य से वे प्रसन्न दोने के स्थान में असन्न दो गये और उससे वरदान मॉगने के लिये कहा । इस पर शीनकजी ने पूछा--'मद्दासंज घोर नें कौन सा कार्य किया था । शिवजी उसकी क्सि सेवा से प्रसन्न हुए। उससे उटदा उनके श्री ग पर पैर ८ रसकर घोर 'झपराघ किया था 1” नल हू या




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