शिक्षा मनोविज्ञान की नई रूपरेखा | Shiksha Manovigyan Ki Nai Ruparekha

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Shiksha Manovigyan Ki Nai Ruparekha by डी॰ एस॰ रावत - D. S. Ravat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मा काल न गन में ना की के कि को का दो सुर द दर अ यम नसमरपटरलसकररपसटसकसनसससरससटसपस्रनद मय 7 किक पा असफल फ़िर किक कि कक मे कफ न नाक मालिक हनन यों की निधि (८०७5) में भिन्नता होती है। व्यक्ति अपने सामथ्य निधि के भ्रनुसार ही श्रपना विकास करता है । फिर भी पूर्ण विकास के लिए समय पर उसे सहायता की आवइयकर्ता होती है । भिन्न २ व्यक्तियों को पिन्न २ प्रकार की सहायता की श्रावस्यकता होती है । श्रत: व्यक्तियों के बौद्धिक व. स्वभाव (पट शफट0) सम्बन्धी श्रन्तर का. भी अव्ययन के स्लो 'भ्रावइवक है । हमें ब ्चों की. रुचि भिरुचि (शुएएएर्ट) और योग्यता ( 0) से भी परिचित होना चाहिये ताकि हम उनके सही विकास के लिये सहायक हो सक । मदर कम री री पक श्र हमें विदवास हो जाना चाहिए कि बच्चे के सही विकास के लिए शिक्षक _ को मनोविज्ञान की सहायता लेनी होगी । मनोविज्ञान की परिसीमाश्रों के बाव- जूद भी यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि झ्राघुनिक मनोविज्ञान का पभिक्षा के क्षेत्र में महान योग है । यह भी प्रश्त उठता है कि मनोविज्ञान द्वारा ऑपित ज्ञान को समकते के लिए शिक्षक के पास पर्याप्त समय कह! है ? बहुत ज्ञान को पाठ्य पुस्तकों व. (िरिव्डा हा ८0पा86 ) द्वारा. उपलब्ध करना होगा परन्तु इस सम्बन्ध में एक उद्धरण झ्रावश्यक है:-- ले न ्पूठ ला, 9०0, 0. तल एफ . 90086 प1121:6४ ८1. एघा . छट 2060 06: उठकर: 0ज5हाएधएाा , डंडे दा एफणाथितां एक 1 ट्हाए िविटॉटा' 5 पा रू पड उप्अटापाकपिट पते ०. ट्िताशहाा प- ये ः कठ्फ्रें इड का स़ततोड 2फ़्ते झाणफुड, दरार वि मा छेडा ए59०एॉ०8्ठा 5: दा प० दि पड (टद00हा5, 200. उप 60 पा दूत लाठाणफणाड, पेंहोज फट एफाट लाए, 15 10 5पछुड€5घ पाउट पका टुडे हाफ बॉज्छिघा, टॉस हा 2 50 पटीफू _ 05 (0. फ़ातटाडादाात और सामूहिक दोनों ही टष्टियों से क्रम बद्ध श्रघ्ययन निरीक्षण के समान_अ्रन्य कोई भी. पुस्तक सहायक ने हमारी बच्चों को समकने व. उनके सम्बन्ध [को बताया जिसके लिए हम उनके प्रति




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