श्री द्वारिकाधीश की प्राकट्य - वार्ता | Shri Dwarikadheesh Ki Prakaty - Warta

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Shri Dwarikadheesh Ki Prakaty - Warta by श्री ब्रजभूषण जी महाराज - Shri Brajabhushan Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वितीय उल्लास 3 पा दे व ७9 इन्द्र उबाच-- हद ददतो मम भूपाल ! न गुह्दासि वर यदि । वज्ं त्वां प्रेरयिष्यामि वधाय क्वतनिरचयः || १७ ॥ . एवमुक्त्वा सहखाक्षः खक्तिणी परिठेलिहन्‌। कुठिशं आमयामास गृह्ीत्वा दक्षिणे करे ॥ १८ ॥ तस्येत्थ॑ आम्यमाणस्य महोत्पाता: बभूविरे । ततः पर्वतश्वंगाणि विशीर्णानि समन्तत: ॥ १९ ॥ के न ०, न, के ही ४० हि 3 आइत नमन मघावंघुन्वानमह्मं तदा । न किश्चिहस्यते तंत्र सबे सन्तमसावृतमु ॥ २० | एतस्मिन्‍्नेव काले तु स राजा हरिवत्सलः । निमील्य छोचने स्वीये समाधिस्थों बमूव है ॥1२१।' . इन्द्र बोठे 2-“ में बर दें हूँ, और तुम वर नहीं लेवो हो तो तुमारे वध जौ निश्चय करिके मैं बज़ कौ पार करूँगो ( वज् नाम के आयुध हूँ. मारूँगो ), ऐसें कहिके क्रोध करिकें जीम हूँ ओप्ठ चाटिकें, जेमने हाथ में वज्ज लेकें घुमायों । ता समय अनेक उत्पात होयबे लगे, और पतन के दिखर उड़ि-उड़िकें चासें आडो गिगबे लगे; और मेघ की गजना सँँ आकाश गुँजिवे लग्यो । पृथ्वी कंपायमान होय गई; चारों ओर ऐसो इन्द्र ने कोप कियो, तब राजा ने बाही समय वाही क्षण आँखें मीचिकें समाधि चढाई और अपने इष्टदेव कौ ध्यान करिवे लगे । ततस्तुष्टो जगन्नाथस्साक्षात्‌ प्रत्यक्षतां गत: । ऐरावतां स गरुडस्तस्क्षणात्समजायत ॥ २२ ॥ _ तमुवाच हषीकेशो मेघगंभीरया गिरा ।' ध्यानस्थित॑ नृपश्रेष्ठं दाज्जचक्रगदाघरः ॥ २३ ॥ राजा की दृद भक्ति देख प्रसन्न होय भगवान्‌ ने साक्षात्‌ पकट होयकें दर्शन दिये, और गरुडजी अपने ऐरावत कौ रुप छोडके वाही समय गरुडजी होय गये । अपने इन्द्र के स्त्ररूप को मिटाय शंख-चक्र-गदा-पद्घारी चत॒थु जस्वरूप सगवान्‌ ने दर्शन दिये, और वे अपनी मेघ की सी गंभीर बाणी हूँ ध्यानावस्थित राजा के प्रति आज्ञा करिवे लगे । श्रीमगवानुवाच नल परितुष्टोडस्मि ते वत्सानन्यभक्त जनेइवर ! । चर वरय भद्रे ते यद्यपि स्यात्पुदुरुमम्‌ । २४ ॥ श्रीभगवान ने कही :-” हे वत्स ! हे अनन्पभक्त ! राजन्‌ ! में तेरे ऊपर प्रसन्न मयो हूं। तेगे कल्याण होवे, और दुर्लभ से दुर्लभ जैसो चाहो वैसी वर मौँगो ” । अम्बरीष उवाच-- व यदि प्रस्नो भगवान्‌ यदि देवों बरो मम । - संसाराब्बेत्तारणाय वरदों भव मे हरे ! रण |




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