मृगतृष्णा | Mrigatrishna

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Book Image : मृगतृष्णा  - Mrigatrishna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही ) पक बड़े साहब बड़े साहब आज रिटायर हो रहे हैं । बड़े साहब, कुछ वर्ष पहले तक केवल “साहब थे । “बड़े की वृद्धि के पीछे कई घटक थे । वस्तुत: उनका प्रमोशन नहीं हुआ था, लेकिन घटनाएँ कुछ ऐसी घूम गयी थीं कि वे साहब से बड़े साहब हो गये । पहले उन्हें बड़े साहब का सम्बोधन थोड़ा अटपटा सा लगता था, क्योंकि जिन्दगी का एक बड़ा हिस्सां वे खुद दूसरों को बड़े साहब कहते रहे थे। एक क्लर्क के रूप में अपनी नौकरी शुरू करने के बाद अपने गुर्णों की वजह से वे प्रमोशन पाते गये फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे जब भी प्रमोशन पाते थे, अपने को नये वर्ग का सदस्य बना लेते थे और पिछले साथियों को अच्छी तरह भूल जाते थे। लगभग दस वर्ष पहले वे अफसर यानी साहब बने थे । उनके साहब बनने के बाद, उनकी जीवन शैली में आमूल-चूल और गुणात्मक परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए। हर हफ्ते, “क्लब-डे' के समय नियमित रूप से पहुंचने लगे । वख्र, जूतों आदि से उनका साहबपन प्रदर्शित होने लगा। अपने पुराने साथियों से जो ताल्लुकात थे, उसे वे किसी बुरी घटना की तरह भूलने लगे। आज बड़े साहब का मन बहुत दुःखी है। वे जिस रियासत' के अभी तक एकछत्र मालिक थे, वह कल से बेगानी हो जायेगी । वस्तुतः वे दुःखी इस कारण भी हो रहे थे कि स्वयं उनका व्यवहार पूरे 74 / मृगवृष्णा




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