शुक्ल - स्मृति | Shukl Smriti
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
203
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुनि सुमन कुमार - Muni Suman Kumar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जींवन-रिखों 1) [दो
स्वागत करने के लिए पवार यए । बहां उन्होंने आचार्य श्री जी की चरणों में
अपना-त्याग पत्र संघ-संगठन एवं शान्ति के लिए अपित किया ।
यह घटना दिं० २७ फरवरी १९६५ की हैं । भाचार्य श्री जी का पदा्पण
श्री महावीर जैन भबन में हुआ और लगभग ४ वजे सायं प्रवर्तक श्री जी कौ
रक्तचाप और हृदय रोग का आक्रमण हुआ । पूर्ण विधाम से रोगोपशांति के वाद
आचार्य श्री जी के साथ पंजाव-श्रमण के लिए तैयार हुए किन्तु होथियारपुर
श्री संघ के अत्याग्रह के उपरान्त थी अम्वाला श्री संघ के आग्रह गौर नारीरिक
दुर्बलता तथा श्रद्धय वयोवृद्ध श्री कपूर चन्द जी महाराज की विनय के कारण.
अम्वाला ही चिराजनान रहे । इसी चतुर्मास में प्रवर्तक श्रीजी को भाद्र-
पद में हृदय गति एवं रक्तचाप का भयंकर आक्रमण हुआ किन्तु आपने उसका
अपनी मात्मिक घक्ति से पूरी तरह सामना किया गौर लगभग ७-८ फरवरी
को अस्वाला से पंजाब यात्रा के लिए चल पड़े । शरीर चलने में जितना दुर्वल
था मन उतना ही साहसी । श्री संघ के अत्याग्रह पर इतनी वात कह कर
बिदा हो गए कि “भाप की सेवा-भवित का प्रेम मेरे मन में है, अम्वाला का मुझे
व्यान हैं एक वार श्रिंचार है कि पंजाव के क्षेत्रों का चक्कर लगा आऊं वहुत
वर्ष हो गए हैं फिर फरसना हुई तो यहीं आने का विचार हू ।””
आप डेरावसी, प्रभात, चण्डीगढ़, खरड़, कुराली, रोपड़, वलाचौर, नवां-
बाहर, वंगा होते हुए होशियार पुर पवार गए । यहां से जालन्वर बाहर जाना था
चनुर्मासार्थ । यहां फिर स्वास्थ्य में शिधिलता भाई किन्तु संभल गए । ज्येप्ठ
मास के क्रप्ण पक्ष के पदचातु जालन्वर छावनी पवारे । मार्ग में उन्हें दो वार
हल्की सी पीड़ा हुई किन्तु विहार करते ही रहे । शनिवार की. रात, रविवार
को प्रात: प्रतिक्रमण एवं मंगल पाठ, लौचादि क्रिया से निवृत्त होकर ६-३०
बजे अपने आसन पर आकर बैठते ही अववेतत हो कर लुढ़क गए और उन्हें
प्ाघात का भी आक्रमण हो गया । मेजर डा० इत्द्रसिह एवं डा० कैप्टन
और दा० कर्नल गोपी नाथन् । इवर डा० मित्रा (जो कि अम्बाला श्री संघ लेकर
आया था) के परामर्थ पर चिक्त्सा हुई और वे स्वस्थ हो गए । डाक्टर वर्ग
चकित था कि एक मास में ही वे किस प्रकार स्वस्थ हो गए । हमारे विचार
में कम से कम ६ मास तक ही स्वस्थ होना चाहिए था । यह तो इनके साधु जीवन
गौर ब्रह्मचर्ये का ही प्रभाव है । जालन्चर छात्रनी के श्री संघ ने हार्दिक सेवा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...