कालिदास की बिम्ब - योजना | Kalidas Ki Bimbayojana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
325
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हे कालिदास की विम्व-योजना
स्यीकति हैं । हित्दी फे सुप्रसिद्ध थालोचक रामचन्द्र युनग ने स्पप्ट वि में चिम्य
के महुरव को स्वीकारा है--''काव्य में सर्थशहणा मात से काम नहीं जी घिम्च
गएशा गपेधित होता है,” काव्य का काम है कह्पना में चिम्य । या. सुर्तेभावना
उपस्थित करना, बुद्धि के सामने कोई विचार लाना नहीं तथा 'कविता में कही वात
चित्र रुप मे एसारे सामने झानी चाहिये 1 विस्व-विघान की झ्रावश्यकता को
प्रत्तिपादन करते हुए ये कहते है--'वाव्य की कोई उत्ति कान में पड़ते समय जय
काव्यवस्तु के साथ पता या. वोदव्य पान की कोई सु्ते भावना सी राठी रही है,
तभी प्री तन्मयता प्राप्त होती हैं' ।*! झपनी कवि जनोचिन्न भाषा में पदूससीं
रामिसानग्दन पन्त कावप में सम्सुतन की झावश्ययता बताते हुए शिरति है-'कविता
के लिये चि्रभाषा की प्रावश्यफता होती है । उसके शब्द सत्पर होने चाहिये जो
बोलते हो । सेय की तरह जिनकी रस-मधुर तालिमा भीतर न सभा सकने के कारण
वाहर छयक पड़े, जो. सपने भाव को अ्रपनी ही ध्वनि में थाँगों के थागे चिनित
फार सकें, जो भतार में चिप थौर चिच मे भककार हो', ।** परतजी के उपयुक्ता कपन
में विम्य के रचनात्मक स्वरूप, रावेदना के मिधण आर तीव्र संवेगात्सयफता की
व्यार्या का प्रयास लज्ित होता है ।
फयि ही दुध्टि से भी विस्वनविधान गत विशेष सह्व है । फाव्यननिर्माग्गि
शब्द के साध्यम से दोता है । शब्द से पूर्व शर्थ, अनुभूति के रुप में कवि के हृदय में
रहता है । कवि जिस चस्तु या भाव की अनुभूति करता है, उसे, उसी रुप में पाठक
को भी कराना चाहता है। इसके सिये कवि के दृदय की चान्तरिया झनुभूति एवं
बाहा सभिव्पक्ति से साश्य होना घावश्यक हैं । सनोवज्ञानिकों के अनुसार कयि
नपपने ऐरिद्रिय संयेदन की सानसिक प्रकिया से झनेक संवेदनासों को गहगा करता है ।
जेंसे दुष्टिन्संवेदना, वनिनसंपेदना, घाग-संवेदना सादि । ये कियाएँ घरीर के
पिभिन्न झवगवों के सहारे शमुत रुप में होती रटवी है । यह कवि की व्यन्दिगत
पस्तु है । कवि को संपनी व्यप्टिगत अनुभूति हो समध्टिगत चनुभृति के रुप में
परिगात करना होता है जिससे दुसरे, उसके हृदय पी भावनाथों को उसी यो भांति
अनुभव कर सके । चशेग ने कवि का शाश्वत्त घ्म यही माना है ।
'एमे किसी कहिपत धजरता का सोह नहीं
गाज के विवितत अद्ितीस इस क्षण को
हम पुरा जी में, मी से, आत्पसात् कर में
उसनकी चिविस्त झदितीयता
20... 'चिन्तामणि' नाग 2, प्र. 43-वन
21... 'रसमीमासा' पु. 310
23. 'पत्लच' भूमिका, पृ. 17
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