रत्नाकर | Ratnakar

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Ratnakar Arthat Golokavasi Shri Jagannathdas Ratnakar ke sampurn kavyo ka sangrah  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रु १ 'छाई छवि स्यामल सुद्दाई रजनी-मुस की, __ _ रच पियराई रही ऊपर भुरेरे केक कहे रतनाकर उमगि तरु छाया चली, ली चढ़ि अगवानी ददेत 'ावत 'मैंघेरे के ॥ घर धर साजै” सेल 'अगना सिंगारि 'झंग, लोटत उमग भरे विछुरे सवेरे के । जोगी जत्ती जगम जदँ दो तहाँ ढेरे देव, फेरे देत फुदकि विदगम बसेरे के (1 (संध्या) इन 'प्टकों में तथा सैकड़ों फुटकर कवित्तों में रत्नाकर ली का कल्ाविदू रूप अधिक स्पप्ट है। ये वेकवित्त हैं जो उनके जीवन काल, में सैकड़ों बार कवि-सम्मेलनों में श्रोताओं की वादवाही प्राप्त फर चुके है । क्यों न हों। इनकी कारीगरी ऐसी ही है। रस्नाकर जी का छाटे छेटि कविन्सम्मेलन अधिक प्रिय थे। कवि-सम्मेलन नहीं, उन्दें कवि-सडली कहना 'झधिक उपयुक्त हागा। इन्हीं में वे पनी मैंजी कलम के निखरे कवित्त सुमाया करते थे। इन कवितों का संगीक “उद्धवरातक” की कोटि का नहीं है, उससे 'अधिक दलका 'और उसेज्क है ार उतना मनोरम तथा बेदनामय मी नहीं। इन्हों में उनके घीराप्टक के कवित्त भी है जिन्हें पढ़कर एक पत्र-संपादक से लिखा था कि-- “रत्वाकर जी भूपण के युग में रहते है।” परंतु यदद रत्नाकर जी की प्रकृति का विप्रयय है । उनके वोररस के चदों में अधिकांश अनुभूतिददीन हैं। यह युग “भूपण का युग” कहा जा सकता है। पर बीरता के उत्थान के छर्थ में; दिदू-सुस्लिम-वैमनस्थ के अर्थ में नददीं, जैसा कि उक्त पत्रिका-संपादक का सकत जान पड़ता है। तथापि रत्नाकर जी के भूपषणु-युग का कवि कहना केवल हँसी की बात है। फिसी कवि के दो चार पदों के लेकर एक सिद्धांत की स्थापना कर चलना ठीक नहीं । नए नए सिद्धांनों का निरूपण 'और 'आविष्कार करनेवालों में से चाहे. का उन्हें भूपणकाल का और चाहे काई उमर खैयाम का प्रतिस्पद्धीं बतलाये, , परंदु सादित्यिर ओर सामाजिक इतिहास के जानकार छोर रत्नाकर जी “ के परिचित उन्हें इस रूप से नद्दीं देखते । रत्न[कर जी के उद्धदशतक में घद्धव के जोगतंत्र को भोपियों की भक्ति-भावना से पराजित करने फी याजना नवीन नहीं है। उनकी पक्तियाँ भी अनेक 'अँशों में सूरदास, नंददास 'छादि कौर उक्तियों से सिलती-जुलती हैं, यद्यपि उनसे रल्नाकर जी की एक निजता 'अवश्य है। सरुणा और निशुंशा भक्ति की यह रसमयी रागिनों बैष्णव सादित्य को एक सावजनिक विशेषता है। कृष्णायन संप्रदाय के मायः सभी कवियों ने इस रापिनी में 'मपना स्वर मिलाया है । ऐसी अवस्था में यदि कोई कहे कि. रस्नाकर जी की गोपियों की उक्तियाँ नवीन युग के व्यक्तिवाद का संदेश सुनाती हैं अथवा भावी 'अनीश्वरवाद का संकेत करती हैं, ता यह प्रसंग के साथ 'छन्याय और रत्नाकर जी की प्रकृति से अपरिचय प्रकट करना हो दोगा। इससे चमत्कार को स्टि भले दो दो, सत्य की स्थापना नददी होगी 1 +




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