प्रसाद की नाट्य - कला | Prasad Ki Natya - Kala

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Prasad Ki Natya - Kala by पं ० रामकृष्ण शुल्क - Pn.Ramkrishan Shulk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हैं के , मियंवद+ रक्प्लोक; इुचि, वाग्मी; रूदवंश, स्थिर: का... | युवा; दुद्धिउत्साइ-स्ति-प्ञा-कला-मान से युक्त; डार; रद, वेजस्दी, शाखचसु 'ओर घार्मिक' होना लादिए। वदद चार प्रकार का. होता है-“घीरलुलित+- घीरशा्त, चीरोदालश्रौर-घीरोदत, । ललित नावक कलानुयगों निश्चित, सुग्पान्वेपी ओर _ छोमल स्वसात वाला होता है। शान्त नायक जिनयादि गुण से उपेत श्राझण या वैश्य कु्नोत्पन्र होता है । ददा्त नायक यबलशाली, गंमीर, टदचित्तवाना, क्षमादीज शरीर न््रमिसान से सदित दोना चादिए । उद्धन के लक्षण दर्प, मात्स ये; छुल-कपट, विकत्यना 'झादि हू | किसी नाटर का प्रधान नेता इन्हीं यार श्रेणियोंमें से कोई होना चाहिए । मिन्न मिन प्रकारके नाटफों ब्रीर नायर विपयोंके लिए एक या दूसरे घ्रकारके नायकका विधान है। नायक का सखा पीठसरई।विट या विदरूपक होना । नाव कका प्रतिद्न्दी प्रतिनायक कदलावाड़ जो विदिघ दुर्गणों से मरा रदताद 1 नायक के साथ साथ नायिरा के मी नेक मेद-उपसेद सादे गए हैं । इनमें प्रथम और प्रघान-सुकीया': 'परकीया' ' व्मौर 'सामान्या! का है । नायक की भाँति नायिका की भी सडायक-नायिकार्ट होती हैं। शाख्र मे नायक-नायिका के शु्सी के सम्पन्ध में बडा सम्या चौड़ा शाख्राय किया गया हैं जो ययार्थ में मनोविज्ञान के 'ाधार पर दै। परन्तु अपने अतिविस्ठार के कारण वद्द परम अमावदद हो गया है. 1 तह ्ि का विस प्तु सर नायक साधन हूं । गस उेरय है ।_यददू छात्य जी । आउा सूप से प्रत्येक अकार के काव्य में इसकी गे / ,.. 'सुख्यता सर्वमान्य है. । _'अनिदार्य श्माघाररूप से, बला कड़ा दे, वस्तु की श्रयानता है । परन्तु रस- 1 वस्तु शोमाकर नहीं हो सकती, जिस




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