जैनधर्म शिक्षावली भाग - 5 | Jainadharm Shikshavali Bhag - 5

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Jainadharm Shikshavali Bhag - 5 by उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम - Upadhyay Jainmuni Aatmaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) प्रप ाप के चप्देशऋ फंड को दान, भिये हें था, मेमे भाते] कृपया पहुंच स॑ फृवाये करें । । मदद्दीपू- - गा मम्मी-पथ्टि द्वीप”. भष मरी भी ने इन दोनों पत्रों को, घुना दिया तब कोगों ने झति दर्प पट किपा तथ सबापति ने धर्म मसार- षिपप पर एथ मनाइर स्पास््पान दिपा जिस को घुन कर कोग अधि मसंझ इुए ! तद्नु समा भी मजन मदसती ने पक मनोइर लिन स्तृति गऊर; समा का साध्ाड़िक. मद्दोस्सब समाप्र किय। इस मद्दोर्सब का देव कर. शास्ति प्रशाद थी बड़े मसनन हुए भीर पद सन में मिंभ्रप शिपा कि-इम सी सपने नगर में इसी मार सन्धुझस करत हुपे चमे प्रचार करेंगे ॥ चठुधे पाठ ( भवन जैन कन्या पए शाखा ुमस्दु, भर नगर के एक बड़े पविभ्न मोहन्ना में सेज बऋत्पा पाठ शाका का स्थात्त दे षददों शोकिक था बािक पं




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