आचार्य मम्मट | Acharya Mammat

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Acharya Mammat by घुंडिराज गोपाल - Ghundiraj Gopal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। हाचाये मम्मट ग्रग्य में रचयिता) “राजानव रुय्यय” ( असझ्ारसबंर्स ने निर्माता) राजानिव जयानर आदि आाचायँ मम्मड का जो उलोसख 'निदाना'ं टीका में “राजानकवुलनितव” के रुप में आया है उसमें यह भी कटा जा सदा है कि मर्मद के बुल मे ' राजानक” यह उपाधि पुर्वपरम्पस से सती था रही थी 1 चतुर्थ उल्तास में शान्तरस वे उदाहरण में “अही वा हारे था” इस्या दि पथ का देना, भी, जिसती रसना काइसीरदेंथीय अचा परे अभितवगुप्त के गुरु सथा प्रत्यभिज्ता्सुघादि ग्रन्यो के रचयिता श्री उत्पतराज ने वी है, आचार्य सम्मट के बाइ्मीरी होने में उपोदवनर प्रमण्ण हो सकता है । निरुपादानसंसा दे इ. पद्य भी धाइमीरी कवि नारायगमद्र का है ।” आचार्य सम्मट का पाटिडत्य : थी घामनाना्प झलवीकर के अनुसार थाचार्य मम्मट एवं “अनुपम पथ्डित थे । इसी बारण 'बस्व्यप्राद को आिकर” ग्रस्य माना जाता है । डाकी प्रासाधिवता वे करण बेयाय रणनसिद्धसत-मथ्ूणा आदि ग्रस्यों से अपने वथन वी प्रामाणिकता सिद्ध वरने वे निए उसे 'तिदुक्‍्नें वाव्यप्रवाे” इस प्रतार उद्धुत निया गया है। सुप्रसिद्ध “सुघासागरी” के टीयपतार भीमसेए तो सम्मट को “थाग्देवतावतार” कहते हैं के गोविस्दटकऊुर ने अपने 'वाव्य-्यरद्ीप' में बावपप्ररादाबार पर “दिवियना” वा जासेप किया था 1 उसका खण्टन भीमसेन नें महानु पयास से क्या है और वाद में उन्होंने -- “तम्मादु सोविर्दमहामहोप। ध्यायानामीप्य माबगदशिप्यते । ने हि. गीवापपुर्वोध्पि श्रीचाग्देवत।रोक्तिमाझेप्तुमु प्रभन्ति 1” इत्यादि द्वारा मम्म्ट वे यथन मो थवादूय बठनाकर उनमें अपनी श्रद्धा प्रगट वो है | वाच्यप्रकाद' वी * निद्दता” टीया के रचबिता थी आनन्द बचि कार्मीर निवामी नथा धंव थे । थे अपनी टीका ने आारम्म से जिले है-ति शिवागमप्रसिद्धपा पर्ट्लिशनत्वदीशाकषपितमदपटन प्रिय पत्सयस्परिचदासेस्दपन. 'राजानककुलविंवकों सम्मटनासा दैशिशवर' दे ॥ इन पतितियों से झात होता है कि आचार्य मम्मट झंव आम 5 ज्ञाता ही नहीं थे जपिड उमा “सिम्प्रदास में श. दें, का. प्र. झ., पू- १३२ तथा बच्टकोयदिनिष्प्ट, हु. पू 2१९ | मद पथ भी उराउसय वा है । २ दे. का प्र. हा. पृ. ८ ई. दे. सु सा. भूमि, प्र ६1 ४. दें. का, प्र श. भू, पे दू31




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