चिन्तन - अनुचिन्तन | Chintan Anuchintan

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Chintan Anuchintan by नेमनारायण जोशी - Nemnarayan Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कवि रवीन्द्र की सौन्दय॑शास्त्तीय हृष्टि 9 के, शिव के दर्शन करने से जो आनन्दानुभूति उसे होती है, उसे कला या साहित्य में अभिव्यक्त करता है । वस्तुतः अपने आप को वैज्ञानिक तथा बुद्धिवादी कह कर झुठे गये का अचुभव करने वाले. ही सत्य से दूर हैं, कारण कि सत्य को जानने की उनकी पद्धति ही गलत है । जो एक है, अखण्ड है, उसे वे विश्लेषण के द्वारा जानने की चेष्टा करते हैं । उनकी चेष्टा के सफन होने में सन्देह ही सन्देह है । माकाश के नक्षत्र चल हूं अथवा अचल ? दूर से देखने पर वे अचल हैं निकट से देखने पर चल हैं । नक्षत्रों के सम्बन्ध में ये दोनों तथ्य समान रूप से सही हैं। 'दूर' तथा 'निकट' के तथ्य परस्पर भिन्न हैं । हैं वे तथ्य ही । ये दोनों तथ्य, जिस एक वस्तु से सम्बन्ध रखते हैं, जिसके स्वामित्व को स्वीकार करते हैं, वही सत्य है। इस सच्य के सम्बन्ध में ईषोपनिषद्‌॒ का तत्वदर्शी कहता है “वहू चल है, वह अचल. है, वहू दर है, वह निकट है ।” कोरे विज्ञान के विश्वासी को इस उक्ति में कोई सार नहीं दिखाई देता । वह इसे “कास्ट्रडिकशन इन टम्सं' कह कर अलग कर देता है । पर देखा जाय तो सुष्टि के रहस्य में एक ऐसा बिन्दु भी है जहाँ अन्तरविरोध मिल जाते हैं, जहाँ ससीम अपनी सीमाओं को व्यापक बनाते बनाते असीम बन जाता है भर असीम अपनी परिधि का संकोच करते करते ससीम बन जाता है । यदि उस बिन्दु को भुला दिया जाय तो वस्तुएं अपनी यथाधेंता से हाथ धो बंठती हैं । यदि हम लोहे के एक टुकड़े को एक बहुत बड़े भणुवीक्षण यन्त्र के नीचे देखें तो हमें केवल उड़ते हुए परमाणु-अंश ही दिखाई देंगे, लोहे का अस्तित्व मिट जायेगा । दही के साथ भी यदि यही किया जाय तो असंख्य बेक्टीरिया के जीवाणु ही, देखने को मिलेंगे, दही देखने को न मिलेगा। यह भी हो सकता है कि ऐसा करने के बाद दह्दी खाने की हमारी रुचि भी समाप्त हो जाय । लोहा इसलिये लोहा है और दही इसलिये दही है कि असीम ने ससीम रूप धारण कर रखा है । यही अन्तर्विरोधों के मिलन का बिन्दु है । आकाश (स्पेस) के सम्बच्ध में जो सत्य है, वह काल (टाइम) के सम्बन्ध में भी है । कुत्ता जिस गन्ध को ग्रहण कर सकता है उसे मनुष्य नहीं कर सकता । भूकम्प की पु्वंसूचक लहरों को बहुत से पक्षी ग्रहण कर लेते हैं. मनुष्य नहीं कर सकता । उनका समय और हमारा समय एक सा नहीं होतां । हमारा स्वप्नावस्था और जाग्रदवस्था का समय भी भिन्न होता है । स्वप्न में हम अनेक वर्षों की घटनायें कुछ ही मिनटों में देख जाते हैं । यदि हम अपने समय के केन्द्र-बिन्दु को इच्छानुकू- लित कर सकें तो एक निझंर को अचल और एक वन को चल रूप में देख सकेंगे । रवीन्द्र की मान्यता है कि वस्तुओं का रहस्य उनकी गतिशीलता में है । हम पुस्तक पढ़ते हैं । पुस्तक में कई अध्याय होते हैं । वे समस्त अध्याय गतिशील होकर




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