दिशाओं का परिवेश | Dishaon Ka Parivesh

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Dishaon Ka Parivesh by कृष्ण शंकर शुक्ल - Krishn Shankar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपन्यास के सम्बन्ध में ्र वैचारिक परिवेश के झन्तर्गंत हो ये वातें और प्रयाम सम्भव हैं; क्योकि सामान्य रूप से समय काटने के लिये पड़ें जाने वाले उपन्यास्ो के सम्दन्ध में ऐसा सोचना एकास्ततः निरयेक है । यह भी सम्भव है, कि कोई देखो हुई घटना झथवा प्रभावशाली दुश्यावली हृदय पर एक व्यापक प्रभाव छोड़ जाये । मस्तिप्क में पर्याप्त समय तक वह दृश्य श्वदा घटना पुरानी होती रहे । उससे सम्बन्ध स्थापित करने के लिए तमाम झानुपगिक घटनाएँ श्रौर दुश्य झाते रहें और अन्त में कई वर्षों के अन्तराल से वह सारी नामग्री एक कयाझूति का रूप ले ले 1 एसा भी हो सकता है, कि किसी विशेष चरित्र में इधर उधर से कुछ प्रसग झऔर झा जुड़ें । अनुभूत सामग्री को उपन्यास का रूप देने मे कलाकर की प्रतिभा, शिल्प कोदात तथा समय बडा काम करते हैं । इस सारी व्यवस्था का संयोजन नहीं करना पढ़ना 1 स्वतः एक दृष्टिकोण बनता चलता है । लेखनी विचार को, आत्मानुभूति को चिन्तन को रूप देती चलती है । कुछ उपन्याप्तकार “प्रमाघारण मानवीय अनुभुति' के प्रति झपना लगाव भ्रघिक मानते हैं । यह भी कहा जाता है, कि उनका काम प्रकृति को प्रतिलिपि तँयार करना नहीं है । कौन दृश्याकन, श्रनुभूति, घटना झौर वात उपन्यास बनने के योग्य हैं इसके निर्णय का पूरा उत्तरदायित्व लेखक पर होता है । एक वार फ्लाबेयर को पत्र लिखते हुए जॉजं सेण्ड ने कहा था, कि “मैं इस वात पर विद्वास करता हुं, कि लेखक को अपनी प्रशूति के भनुकूल जिन्दा रहना चाहिए । लेखक के लिए व्यवितगत स्वतंत्रता, बहुत वडी उपलब्धि हैं। परिणाम यह निकला, कि हिन्दी के लेखकों ने फैशन के भावार पर म्रपने झपने धावरणों को प्रदशिनी लया लो । री, दाराव झौर झनोखा- पन साहित्यकार का शोक बने गया 1 मैने 'पंकुरण' का उदय लेकर मजनू वन कर दोड़ने हुए लेखकों को देखा है। उनकी दिपय वस्तु पढ़ी मोर सुनी है । अधिक कहने को भावइ्यता नही, स्वांग रचकर उपलब्धि का भायोजन कितना हेय है । राय: सभी प्रकार के उपन्यांसी का सम्बन्ध चरित्र से होता है। लेखक के झन्तमंन को वह प्रभावित करता है । वैविष्य की दृष्टि से दिय्व के किसी भी भाग में पाया जाने वाला चरित्र भपनो विशेषतामों के झाघार पर उपन्यास के अंकुरण का कारण बन जाता है। कभी-कभी तो यह भी देखने में ाता है, कि चरित्रों के आकलन का सच्चा भौर भाकर्षक रूप उपन्यास मे मिलता है पर कथयावस्तु का भीनापत उसकी (कथावस्तु] याद भी नहीं माने देता । बंगला के प्रसिद्ध उपन्यास 'चौरगी' लिर घकर) के सत्द्े में यह बात पूरी तरह चरितावें होती है ! चरित्रों का पार चर्तनशील व्यक्तित्व कहानी के ढाँचे को उभरने नहीं देता । यह बात डायरी शैली वे उपन्यासों के सम्बन्ध में भी सोची जा सकती है । सामाजिक, राजनेतिक झौर झायिक विपमताओओं के साय जव धामिक कट्रता वी उनटी सीधी गतिविधियाँ जीवन को, जॉने की कला को दूष्टिकोर्णों को सर्गबद्धता को भनिदापें रूप से प्रभावित करती हैं, तद उपन्यास के झंकुरण का रूप कुछ सौर




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