आदर्श हिन्दी - संस्कृत - कोश | Adarsha Hindi - Sanskrit - Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४ ) बासुदेव दविदेदी शास्त्री ( साव॑भोम सस्टत प्रचार कार्यालय, वाराणनी ) प्रो० रामसरूप शार्दी दादा सफर लित एवं सम्पादित “कादद दिन्दां सस्झत वौश” के द्वितीय ब्सस्वरण वो देखबर दादिक असझता हुई । दिन्दी-सस्कृत वोश के क्षत्र में यद्दी एक ऐसा चोश था जो याकार, शप्दमख्या एवं उपयोगिता की इूष्टि से सर्वोत्तम था लौए इसीछिये इसका लव बहुत दिलों तक सदक रद था । सेफडों चिशाउुओं को तो मैंने ही इस कोदा दी सूचना दी होगी रे नय उन्दे यदद माल दो लाता था कि यद कोश सम्प्रति उपचब्व नदं है तो वे दार्दिक दुख प्रकट बरते ये औौर चाइसे थे कि यदद कोश किसी प्रकार उन्दें उपलब्ध हो जाय । खत सामनीय दाछीजी से इसका पुन सम्पादन तथा चौयम्बा विधामवन न श्तका प्रवाशन बर नौ भर्मरय जोगी वी आककषिओं की पूर्ति की है इयर लिये ये दोनों हार्दिक धन्यवाद वे पाय हैं । यदद बने थी आावइयकना नदीं कि दिन्दौ सस्कृत कोश का सम्पादन सस्टत दिल्दी कोश के सम्परदन की उपेक्षा पक कठिन बाय है । कारण कि आन की दिन्दी मैं अरवी, पारसो एवं अग्रेती के भी बदुत से शब्द प्रचल्ति दो गये हैं । इसके अतिरिक्त देशी तया लोक्मापाओं के दय्दों वी भी साया कुछ कम नहीं है। फारसी, अरदी नव अग्रेती के पारिमाधिक शब्दों वा एक विशाल अण्डार अलग ही दै। इन शर्ों के पर्यायवाच दाब्द पुरानी सस्कत मैं नहीं मिलते अत उनके लिये नये सर्दधन शर्स्टों का निर्माण मरना पडता हैं जो साधारण विदयान से संमव नहीं है । यही स्थिति उन सभी शब्दकोशों मैं पाई जानी है जो कग्रेती, बैँगला, सराठी, शुजरानों, तमिल पर्व तेलगू आदि भाषाओं से सम्कून में लिये गये हैं । मेरे कार्योरय में ऐसे अनेर वोदा हैं। इन शस्दकोशों में भी पर्वाप्त सख्या में नये सस्कूत शब्द व्नापि गये हैं । व कठिनाई यह है कि विभित कोर्शों में जो नये शभ्द कनाये गये हैं उनमें एकरूपता नहीं दै। ठेखवी ने अपने भपने शान एवं रुचि के अनुरूप शब्दों का निर्माण किया दे । िन्दी फिर कोशों में उत्तर एव दष्तिण सारत व प्रदेशिकता का भी प्रभव परचक्षिप दोता दे ! ऐसी हियति मे नीम सरइत शर्म्दों थे अन्य भाषाओं के नतद दाग्दों के तरत्‌ अयों का सदन बोध होने थी बराना वक्ता एव श्रोता दोनों क॑ लिये असभव या कठिन हाता दे । सम्कृत के आधुनिक लेखकों व वक्ताओं ये लिये यइ एक समस्या है निसका समावान होना परम सं वडयक है । प्रस्तुत कोश में शौस्रांजी ने उक्त कदिनाश्यों के निवारण के लिये मो पर्याप्त प्रयन रिया दै जो उनवी भूमिका पदने से अ*्ठो तर बिदित होता है। यदि कोई समस्या या शब्द सिमाए समिनि विभिन्र कोशवारों दारा नवर्निमित संस्कत शग्दों के अखितर सारनीय विदर्समाज की दृदधि स सर्पसामान्य भर सर्वत्र समानरूप स प्रचलन बरने की योजना बनाये तो उसका सफलता में इस बोदा से बड़ी सददायना बिल सकती है । प्ररन्छ नव तह इस प्रकार को काइ योलगा नहीं बनती, और जिसके बनते की सभावना भा गं्र ही दीखनी दैं, तब तक सी कद को आदर्म चोदा माना जा सकता है। इस दुष्टि मे इसका * आदर्श दिन्दी सस्कन कोश” नाम मैं सका यथा पानना हूँ + मस्कूत वो मत्येक विदान एवं दियावीं इस बोश की एक प्रति अपने पास रस और इससे सहायता लेबर सस्कृत बोलने पद हिसे में अवाधगति से आगे बढ सकरा है, इसमे कौ सन्देद नहीं 1 किला




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