प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं संस्थाएं | Prachin Bharat Men Rajneetik Vichar Avam Sansthaen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Prachin Bharat Men Rajneetik Vichar Avam Sansthaen  by रामशरण शर्मा - Ramshran Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामशरण शर्मा - Ramshran Sharma

Add Infomation AboutRamshran Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
राज्यव्यवस्था पर इतिहास लेखन / 19 निम्नलिखित शब्दों में किया : 'हिंदुओ द्वारा की गई संवै धानिक प्रगति को मात देने की बात तो दूर, उसकी बसयरी भी सभवतः कोई प्राचीन राज्यव्यवर्स्था नहीं कर सकती 1' अत मे देशभक्ति की अदम्य आशा को स्वर देते हुए उन्होंने कहा, उनकी (हिंदुओं की) राज्यव्यवस्था का स्वर्णयुग मार्त्र अतीत की ही चीज नहीं है, बल्कि वह भविष्य में भी निहित है ।'* उनके शो ध के निहिंतार्थ स्पष्ट हैं । उनके निष्कर्षों मे हमे पहली बार इस बात का प्रबल वैचारिक आधार देखने को मिलता है कि भारत पूर्ण स्वतघ्रता और गणतत्रात्मक शासनव्यवस्था का पात्र है। यही कारण है कि विभिन्‍न प्रसगों पर जितना ऑघिक हिंदू पॉलिटी ' को उद्धृत किया गया है उतना प्राचीन भारतीय इतिहास सब धी अन्य किसी शो धप्र थ को नही किया गया है । यह पुस्तक भारत के राष्ट्रवादियो के लिए वेद बन गई । जो ठीक पढ़ा-लिखा हो, ऐसे किसी भी वृद्ध आदमी से मिलकर आप देख ले, बह 'हिंदू पॉलिटी' से अवश्य परिचित होगा । जायसबाल के बाद अनेक विद्वानों ने 'मॉडर्न रिव्यू' 'हिंदुस्तान रिव्यू' और इंडियन ऐटिक्वेरी' मे राष्ट्रवादी दृष्टि से लिखे शो ध-निबं धों की भरमार कर दी और बहुत -से शो धप्रबंध भी लिखे । प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1916 और 1925 ई. के बीच यूरोप और एशिया में राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी आंदोलनो की जबरदस्त लहर उठी । यह काल अनेक दृष्टियो से हमारे राष्ट्रवादी आदोलन के भी 'चरमोत्कर्ष का काल है । प्राचीन भारतीय राज्यव्यवस्था पर जितने शो धप्रबंध नौ बर्षों की इस अवधि मे प्रकाशित हुए, उतने बीसवी शताब्दी के किसी भी अन्य काल मे नही हुए । हिंदू राजनीतिक सिद्धांतो और सस्थाओं पर लिखे गए लेखों को अलग रखे तो भी केवल प्रबं धों वी संख्या एक दर्जन से अधिक होगी । सभी कृतियों फे वैचारिक आधार की चर्चा करना तो यहां सं भव नही है, कितु प्रमुख प्रवृत्तियों की जानकारी हासिल करने के लिए कतिपय महत्त्वपूर्ण प्रबं घों का विवेचन किया जा सकता है। हम राज्यव्यवस्था पर लिखी सामान्य ढंग की पुस्तकों से प्रारंभ करें । 1916 ई, मे प्रकाशित अपनी पुस्तक 'पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन इन एंशिएट इंडिया' में पी. एन, बनर्जी का कहना है, 'इस प्रकार प्राचीन शासनपद्धति को संवै धानिक राजतंत्र की संज्ञा दी जा सकती है ।' यह 'सचिवतंत्र' था 1* वह आगे कहते हैं कि प्राचीन काल में राजतात्रिक राज्यों में ही नहीं, वरन गणराज्यो में भी जनस भा ओं का बड़ा महत्त्व था ।” उसी वर्ष के. बी. रंगस्वामी अय्यंगार की 'सम आस्पेक्ट्स आाफ 'एंशिएंट इडियन पालिटी' नाम की पुस्तक निकली, जो 1914 ईं. मे दिए गए उनके वब्याख्यानों पर आधारित थी । इस पुस्तक मे लेखक ने आधुनिक राजनीतिक विवादों के अखाड़े में लड़ने के लिए 'अपने प्राचीन राज्यव्यवस्था रूपी अस्त्रागार में हथियार ढूंढ़ने की प्रवृत्ति की निंदा की है ।'”*' कितु साथ ही, उसने कहा है कि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now